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________________ माणवक- माहण माणवक [मानवक ] जी० ३।४०२, ४०४,५१६ मानवा | मानवक ] रा० २४४,३५१. जी० ३४०३, ४०६,१०२५ मानवय [ मानवक ] रा० २३६, २७६.३५१. जी० ३।४०१,४४२,५१६ माणविवेग [मानविवेक] ओ० ७१ माणस [मानस ] ओ० ७४. १० १५ मास | मानसिक ] ओ० ६६ माणूस [ मानुष] ओ० १६५.१३. रा० ७५१, ७५३. जी० ३८३२ माणुसना | मानुनग ] ०३८३८२०, ३२ माणुसभाव [ मानुभाव | ओ०७४ | ३ माणुसुत्तर | मानुषोत्तर जी० ३१८३१,८१३. ८६८४२८४५ माणुस [ मानुष्य ] औ०७४।२. ० ७५१,७५३. जी० ३ ११६ माणुस्त [ मानुष्यक ] १० ७५१ माणुस [ मानुष्यक ] ओ० १५. ० ६८५,७१०, ७५३,७७४, ७६१ मातंग [ मातङ्ग ] ओ० २६. जी० ३।११८ माता [मातृ | जी० ३६११ माता [ मात्रा | जी० ३।६६८,८८२ / माय [ मा] - माएज्जा ओ० १६५।१५ मायंग [ मातङ्ग | जी० ३।११६ [मातृ] ओ० ७१,१६२. जी० ३१६३११२ माया [ माया ] ओ० २८,३७,४४,७१,६१,११७, ११६, १६१, १६३,१६८. २० ६७१,७६६. जी० ३१२८, ५६८, ७६५, ८४१ मायासा | मायापायिन् ] जी० ९११४८, १४९, १५२, १५५ मायासाय | मायकपाय ] जी० १।१६ amite [मायामृश ] ओ० ७१,११७,१६१,१६३ मायामविवेग [ मायामृगाविवेक | ओ० ३१ मायाविवेग | मायाविवेग | ओ० ७१ मार [ मार] रा० २४. जी० ३।२७७ Jain Education International ७१३ मारणंतिय [ मारणान्तिक | ओ० ७७ ० १८६ मारणं तियसमुग्धात | मारणान्तिकसमुद्घात | जी० ३।१११२, १११३ मारणंतियसमुग्धाय मारणातिर मुद्धात जी० ११२३,५३,६०,८२,१०१, ३०१०८,१५८५ मारापविभत्ति नाक विक्ति | ०४ मारि [ मारि] ओ० १४. २१० ६७१ मालणीय | माननीय २०१७,१८,२,३२.४२६. जी० ३२८८,३७२ मालय (दे० मालक जी० ३१५६४ मालवंत माल्यवत् | जी० ३१५०७,६६४,६६७ लवंत व ३।६६७ मालवंतपरियाग माध्यम पर्याय २७६ जी० ३:४४: मालवंतपरिया | माल्यवत्पर्याय ] बी० ३।७६५ मालामाल ] ४७,५०,६३,६६,७२. जी० ३५६१ मालागार [ मालाकार ] रा० १२ मालिघरग [ मालिगृहक] १० १८२१८२. जी० ३२६४ मालिनीय | मालिनीय | जी० ३।३०० मायामंडव | मालुकामण्डपक रा० १८४. जी० ३१२६६ मालुयामंडन | मालुका मण्डपक] ० १८५ मास ( माग ! ओ० २८,२६.११५,१४३. ग ८०१. जी० ११८६, ३१११६,१७६,१७८, १८०, १८२,६३०, ८४१, ८४४,८४७, १०८० ४.४,१४ मास | मात्र ] जी० १८१६ मारिया | मासपर्वा | ओ० २३ मासल | मांदल ] जी० ३८१६,८६०,६५६ मासि [मा]ि ओ० ३२ मासिया माती] ओ० २४,१४०,१५४ माहण | माहन ] ओ० ५२,७६ से ८१. ० ६६७, ६७१,६८७,६८८,७१८,७१६,७८७,७८६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003570
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Jivajivabhigame Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages639
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size13 MB
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