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________________ दोच्चा तिविहपडिवत्ती २३६ याओ' चउप्पाइयाओ' मूसियाओ मुगुंसियाओ' घरोलियाओ जाहियाओ' छीरविरालियाओ । सेत्तं भयपरिसप्पीओ।। १०. से किं तं खहयरीओ ? खयरीओ चउन्विहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-- चम्मपक्खीओ जाव* विततपक्खीओ । सेत्तं खयरीओ। सेत्तं तिरिक्खजोणित्थीओ।। ११. से किं तं मणुस्सित्थियाओ? मणुस्सि त्थियाओ तिविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहाकम्मभूमियाओ अकम्मभूमियाओ अंतरदीवियाओ ॥ १२. से कि तं अंतरदीवियाओ ? अंतरदीवियाओ अट्ठावीसइ विहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-एगूरुइयाओ आभासियाओ जाव' सुद्धदंताओ । सेत्तं अंतरदीवियाओ॥ १३. से किं तं अकम्मभूमियाओ ? अकम्मभूमियाओ तीसतिविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-पंचसु हेमवए सु पंचसु एरण्णवएसु पंचसु हरिवासेसु पंचसु रम्मगवासेसु पंचसु देवकुरासु पंचसु उत्तरकुरासु । सेत्तं अकम्मभूमियाओ! १४. से किं तं कम्मभूमियाओ ? कम्मभूमियाओ पण्णरस विहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-पंचसु भरहेसु पंचसु एरवएस पंचसु महा विदेहेसु । सेत्तं कम्मभूमगमणुस्सित्थीओ। सेत्तं मणुस्सित्थीओ।। १५. से किं तं देवित्थियाओ? देवित्थियाओ चउविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-- भवणवासिदेवित्थियाओ वाण मंतरदेवित्थियाओ जोइसियदेवित्थियाओ वेमाणियदेवित्थियाओ १६. से किं तं भवणवासिदेवित्थियाओ ? भवणवासिदेवित्थियाओ दस विहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-असुरकुमारभवणवासिदेवित्थियाओ जाव" थणियकुमारभवणवासिदेवित्थियाओ। से तं भवणवासिदेवित्थयाओ। १७. से कि तं वाणमंतरदेवित्थियाओ ? वाणमंतरदेवित्थियाओ अद्वविहाओ पण्णताओ, तं जहा-पिसायवाणमंतरदेवित्थियाओ जाव गंधव्ववाणमंतरदेवित्थयाओ। से तं वाणमंतरदेवित्थियाओ॥ १८. से किं तं जोइसियदेवित्थियाओ ? जोइसियदेवित्थियाओ पंचविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—चंदविमाणजोइसियदेवित्थियाओ सुर-गह-नवखत्त-ताराविमाणजोइसिय१. पवणाइयाओ (ग); पवण्णाईयाओ (ट (पण्हा० १।८) । २. वाउप्पइय (पण्हा० ११८); प्रश्नव्याकरण- ७. जी० ११११३-११६ । वृत्तौ वातोत्पत्तिका' इति व्याख्यातमस्ति । ८. अतोग्ने मनुष्यस्त्रीसम्बन्धी आलापक: 'ता' प्रती ३. मुगुसियाओ (बा, ख); मुंगुसियाओ (ग); वृत्तौ च नास्ति । मुगसियाओ (ट); मंगुस (पण ० १७६) ६. पण्ण० १८६ । ४. घेरोलियाओ (2) ! १०. अतोने देवस्त्रीसम्बन्धी आलापक: 'ता' प्रती ५. गोहियाओ जोहियाओ (क); गोहियाओ वृत्तौ च नास्ति। जाहियाओ (ख, ग, ट)। ११. पण० १११३१ । ६. थिरावलियाओ (क): थिरी विरालियाओ १२. पण २१४५ । (स); छिरविरालियाओ (ग, ट); छोरल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003570
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Jivajivabhigame Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages639
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size13 MB
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