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शब्दान्तर और रूपांतर
व्याकरण और आर्ष-प्रयोग सिद्ध शब्दान्तर एवं रूपान्तर भाषा शास्त्रीय अध्ययन की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं; इसलिए उन्हें पाठान्तर से पृथक् रखा है। सूत्र संख्या ८
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११८
११८
१२४
१२६
१३०
१३५
१३७
१५४
मउड
"धेयं
गाइ
कट्टाए
पठ्ठे
णाइय
हंत
अभिवंद
आयंस
मिउ
पासाईए
अतीव
तिसोवाण'
महालणं
free
विरचिय
वायाणं
ओणमंति
मउ
"टाणं
मत्थए
जएणं विजएणं
बहुमो
दार
"कवेल्लुयाओ
संकलाओ
पगंठगा
साए पहाए फ्एसे
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मतुड "धेज्जं
णादि
ओकिट्टाए
वट्ठे (खग); मट्ठ
जातिय ( क,ख,ग,घ,च, छ)
हंद
अभिवंदते
मातंस
मउ
पासातीए
अतीत
तिसोमाण
महालए
महि
विरतिय
वाइयाणं
वाययाणं
तोनमंति
मिल
"ताणं
मत्थते
जतेणं विजतेणं
बहुगीओ
बहुगीतो
वार
बार
( क,ख,ग,च)
"कवेलुयातो
संखलाओ
(छ)
(घ,च)
(क, ख, ग )
(क, ख, ग, घ )
(क, ख, ग, च)
(ख,ग,घ)
(क, ख, ग, घ )
(क, ख, ग, च)
( क,ख,ग,छ)
(
(घ)
(क,घ)
( क्वचित् )
(क,च, छ)
क, ख, ग, घ )
(क, ख, ग, घ )
( क, ख, ग, घ )
( च, छ )
( क,ख,ग,च, छ;
( क, ख, ग, घ )
( क्वचित् )
पकंठगा
(घ, च)
साते पहाते पतेसे (क, ख, ग, घ,
च, छ)
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