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जीवाजीवाभिगमे
असोगलयाओ चंपगलयाओ चूयलयाओ वणलयाओ वासंतिकलयाओ अइमुत्तकलयाओ कुंदलयाओ सामलयाओ निच्चं कुसुमियाओ जाव' वडिसयधराओ पासादीयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ॥
__ ५८५. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहूओ वणराईओ पण्णत्ताओ। ताओ णं वणराईओ किण्हाओ किण्होभासाओ जाव अणेगसगड़-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लिथिल्लि-सीय-संदमाणियपडिमोयणाओ सुरम्माओ पासाईयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ।
५८६. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं वहवे मत्तंगया णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से चंदप्पभ-मगिसिलाग-वरसीधु-वरवारूणि-सुजातपत्त-पुप्फफल-चोय-णिज्जाससार-बहुदव्वजुत्तसंभार-कालसंधियासवा महु-मेरग-रिट्ठाभ'-दुद्धजातिपसन्न-तेल्लग-सताउ- खज्जूरमुद्दियासार- काविसायण- सुपक्कखोयरसवरसुरा- वण्णरसगंधफरिसजुत्त-बलवीरियपरिणामा मज्जविही बहुप्पगारा तहेव ते मत्तंगयावि दुमगणा अणेगबहुविविहवीससापरिणयाए मज्जविहीए उववेया फलेहि पुण्णा वीसंदंति कुस विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ॥१॥
५८७. उत्तरकुराए पं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहिं-तहिं बहवे भिंगंगया णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो! जहा से करग-घडग-कलस-कक्करि-पायंचणि-उदंक-वद्धणिसुपइट्टग-विदुर-पारी-चसग-भिंगार-करोडि-सरग-परग- पत्ती- थाल-मल्लग- चवलिय'- दगवारक-विचित्तवट्टक-मणिवट्टक-सुत्तिचारुपिणया कंचण-मणि-रयणभत्तिचित्ता भाजणविधी बहुप्पगारा तहेव ते भिगंगयावि दुमगणा अणेगबहुविविहवीससापरिणताए भाजणविधीए उववेया कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ॥२॥
५८८. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहवे तुडियंगा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो! जहा से आलिंग-मुइंग-पणव-पडह-दद्दरग-करडि-डिडिम-भंभाहोरंभ-कणिय-खरमुहि-मगुंद-संखिय-पिरली-वच्चग- परिवाइणि- वंस- वेणु- सुघोस- विपंचि महति-कच्छभि-रगसिगा तल-ताल-कंसताल-सुसंपउत्ता आतोज्जविधी [बहुप्पगारा ?] णिउण-गंधव्वसमयकुसलेहि फंदिया तिढाणसुद्धा तहेव ते तुडियंगयावि दुमगणा अणेगबहविविधवीससापरिणयाए तत-वितत-घण-झुसिराए चउव्विहाए आतोज्जविहीए उववेया कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ।।३।।
५८६. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहवे दीवसिहा णाम दुमगणा १. जी० ३१२६८ ।
६. उववेया फलेहिं पुण्णाविव विसीति (जंबू० २. जी० ३।२७५,२७६ ।
वृत्ति पत्र १०२)। ३. 'रिदुरत्नवर्णाभा' रिष्ठा या शास्त्रान्तरे जम्बू- ७. मलयगिरिणा पूर्ववर्तिसूत्रद्वये 'मज्जविही
फलकालिकेति प्रसिद्धा (मव) २८६० सूत्रे भाजणविहीं' इति पदद्वयं न व्याख्यातम्, प्रस्तुत'जंबूफलकालिया' इति विशेषणं दृश्यते ।
सूत्रे 'बहुप्पगारा' इति पदं न व्याख्यातम्, किंतु ४. विसटेंति (मवृपा)।
रचनाक्रमेण 'आतोज्जविही' बहप्पगारा इति ५. चवलिअ अवमद (जम्बू० वृत्ति पत्र १००)। पाठः सङ्गतो भवति ।
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