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________________ Į Jain Education International परिशिष्ट - ३ सद्दसूची प्रमाणविधि अव्यय, सर्वनाम, क्त्वा, तुम्, यप् प्रत्यय के रूप और धातुरूप के साक्ष्य स्थल का निर्देश प्रायः एक बार दिया गया है । • रूट ( / ) अंकित शब्द धातुएं हैं। उनके रूप डॅस ( - ) के बाद दिए गए हैं। • शब्द के बाद साक्ष्य स्थल का अंक सूत्र का है, तथा दो अंक प्रतिपत्ति व सूत्र का है, तीसरा अंक सूत्र के अन्तर्गत गाथा का है । जहां एक या दो संगहणी गाथाएं हैं वहां उसके प्रमाण उसी सूत्रांक में दे दिए गए हैं । ] अ • अ [च] रा ६७५ as [ अ ] ० ११,५६,६२ अह [ अति ] रा० ७६७ अइकंत [ अतिकान्त ] जी० ३।५६७ अइक्कंत [ अतिक्रान्त ] ओ० १६८,१६५ / अइक्कम [ अति - - - क्रम् ] - अइक्कमंति ओ० ६२ अइक्कीलावास [ अतिक्रीडावास ] जी० ३।७५६, ७५७ अगाढ [ अतिगाढ] रा० ७७४ अदूर [ अतिदूर ] ओ० ४७,५२, ५३. रा० ६=७ अइबल [ अतिबल ] ओ० ७१. रा० ६१ अमट्टिय [ अतिवृत्ति | रा० ६ अइमुत्तकलया [ अतिमुक्तकलता ] जी० ३३५८४ अमुत्तलया [ अतिमुक्तकलता ] ओ० ११. रा० १४५ अहमुत्तयलयापविभत्ति [ अतिमुक्तकलताप्रविभक्ति ] रा० १०१ अरुग्गय [ अचिरोद्गत ] रा० ४५ अइरेग [ अतिरेक ] ओ० २३. जी० ३१५६०, ७२६, ७३१,७३२ safe [ अतिविकृष्ट ] रा० ६८३ अइसेस [ अतिशेष ] ओ० ५२,६६,७०. जी० ३।५६८ अईव [ अतीव ] रा० १३२. जी० ३।५८० अउणतीस [ एकोनत्रिंशत् ] जी० ३।२२६।५ अउणपण्ण [ एकोनपञ्चाशत् ] जी० ३१२२६ । ३ अणाणउति | एकोननवति ] जी० ३१८२३ अणापण्ण [ एकोनपञ्चाशत् ] ओ० १९२ अउणासीति [ एकोनाशीति ] जी० ३१५७० अत | अयुत ] जी० ३३८४१ For Private & Personal Use Only ५४५ www.jainelibrary.org
SR No.003570
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Jivajivabhigame Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages639
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size13 MB
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