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जीवाजीवाभिगमे
पंचेंदियतिरिक्खजोणिया अपज्जत्तगगब्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया। से तं गब्भवतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया । से तं जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ।।
१४१. से कि तं थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? थलयरपंचें दियतिरिक्खजोणिया दुविधा पण्णत्ता, तं जहाच उप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ॥
१४२. से किं तं चउप्पदथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-संमुच्छिमचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया गब्भवक्कंतियचउम्पयथलयरपंचें दियतिरिक्खजोणिया य, जहेव जलयराणं तहेव चउक्कतो भेदो। सेत्तं चउप्पदथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ॥
१४३. से किं तं परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया भयपरिसप्पथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिया'।
१४४. से किं तं उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-जहेब जलयराणं तहेव चउक्कतो भेदो। एवं भयपरिसप्पाणवि भाणितव्वं । से तं भुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया । से तं थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ॥
१४५. से किं तं खयरपंचें दियतिरिक्खजोणिया ? खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-समुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया गब्भवक्कंतियखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य
१४६. से किं तं समुच्छिमखयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? संमुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--पज्जत्तगसंमुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया अपज्जत्तगसमुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य। एवं गब्भवतियावि जाव पज्जत्तगगब्भवक्कंतियावि अपज्जत्तगगब्भवक्कंतियावि ॥
१४७. खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! कतिविधे जोणिसंगहे पण्णते ? गोयमा ! तिविहे जोगिसंगहे पण्णत्ते, तं जहा-अंडया पोयया संमुच्छिमा ॥
१४८. अंडया तिविधा पण्णत्ता, तं जहा-इत्थी पुरिसा णपुंसगा।।
१४६. पोतया तिविधा पण्णत्ता, तं जहा-इत्थी पुरिसा गपुंसगा। तत्थ णं जेते संमच्छिमा ते सव्वे णपुंसगा।
१५०. तेसिणं भंते ! जीवाणं कति लेसाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! छल्लेसाओ १. १४०-१४५ एतेषां सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रतौ २. उरग (ग)। मलयगिरिविवरणे च संक्षिप्तपाठो विद्यते--- ३. भुयग' (ग)। एवं चतुपदा उरयं भुय प पक्खीवि (ता); ४. पक्खीणं (ता); पक्षिणां भदन्त ! (मव) । एवं चतुष्पदा उर:परिसर्पा भुजपरिसर्पाः ५. एएसि (ट); एतेषां (मवृ) । पक्षिणश्च प्रत्येकं चतुष्प्रकारा वक्तव्याः (मवृ) ।
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