Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ ( 21 ) अंचलगच्छ, कृष्णर्षिगच्छ और ब्रह्माणगच्छ के आचार्यों के उपदेश से बनाई गई हैं / प्रत्येक देवकुलिका के द्वारशाख और भीति स्तम्भों के ऊपर बनवानेवालों के नाम के शिलालेख लगे हुए हैं। पास ही में 'जीरावला' गाँव है, जिसमें ओशवालों के ६और पोरवाड़ों के 4 घर हैं, जो पक्के तीर्थमुंडिये और तीनतेरह की कहावत को चरितार्थ करनेवालेहैं। 7 वरमाण___ यह गाँव बांगानदी के वांये तट पर वसा हुआ है। पुराने जमाने में यह अच्छा आबाद शहर था / इसके चारों ओर प्राचीनता के द्योतक सेंकडो भूमिशायी खंडेहर, और स्थान स्थान पर पतिताऽवशिष्ट वापिकाएँ दिखाई देती हैं। यहाँ के उपलब्ध लेखों में इसका प्राचीन नाम 'ब्रह्माणनगर' मिलता है / गाँव में सुन्दर कोरणीदार एक सौधशिखरी प्राचीन मन्दिर है, जिसमें मूलनायक श्रीमहावीरप्रभु की वादामीरंग की साढ़े तीन हाथ बड़ी प्रतिमा स्थापित है, जो विक्रमीय दशवीं शताब्दी की प्रतिष्ठित है। मूल मन्दिर के प्रवेशद्वार के दोनों तरफ पार्श्वनाथ की तीन तीन हाथ बडी श्वेतवर्ण दो कायोत्सर्गस्थ मूर्तियाँ है, जो सर्वाङ्गसुन्दर और दर्शनीय हैं। इनके आसन पर इस प्रकार का लेख हैं- ३-"सं० 1351 वर्षे माघवदि१ सोमे प्राग्वा