Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ ( 28 ) अभ्यासी होने से धर्मप्रेम से प्रतिदिन हटते हुए दिखाई देते हैं, परन्तु वृद्धलोगों में धार्मिक प्रेम अच्छा मालूम होता है / इस शहर का प्राचीन नाम प्रह्लादनपुर है / इस संस्थान ( राज्य ) का विस्तार 1766 चोरस माइल है और इसके उत्तर-पूर्व तरफ पर्वत की खीणों में 300 चोरस माइल का विस्तारवाला जंगल है, उसमें इमारती लक्कड, जलाने का इंधन, गूंद तथा बीडियों के उपयोगी पत्रवाले सेंकडो वृक्ष हैं। __ शहर में चार जिनमन्दिर हैं, जिनमें सब से बड़ा प्रथम श्रीपल्लविया-पार्श्वनाथ का है, जो भूमिगृह सहित तिमंजिला कहा जा सकता है / इसके मूलनायक पार्श्वनाथजी श्वेतवर्ण 18 इंची बड़े सर्वाङ्ग-सुन्दर हैं। इसकी भमती में 12 इंची बड़े श्रीगोडी-पार्श्वनाथजी, और मेड़ी ऊपर 33 इंच बड़े शान्तिनाथजी, 38 इंच बड़े शीतलनाथजी तथा 17|| इंच बड़े चौमुख आदिनाथजी विराजमान हैं। दूसरा मन्दिर शान्तिनाथ का है-इसमें सफेदवर्ण 26 इंची बड़े मूलनायक श्रीशान्तिनाथजी, इसकी मेडी पर 18 इंची बड़े श्रीसंभवना 1-" संवत् 1747 वर्षे मासोत्तममासे वैशाखमासे शुक्लपक्षे 6 तिथौ शुक्रवासरे समस्तश्रीसंघपालनपुरवास्तव्य श्रीशांतिनाथप्रासादस्य जीर्णोद्धारः कारापितं, पं० श्रीनयविजयगणिशिष्याणुमोहनविजयगणिप्रतिष्ठितं / " (8)