Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ ( 76 ) नाथभगवान् की भव्य छोटी प्रतिमा विराजमान है। यहाँ से शत्रुजीनंदी के उत्तर तट पर हस्तगिरि नाम की छोटी पहाडी आती है, जो चोकगाँव से अर्धा माईल दूर है। इसका चढाव अन्दाजन दो माईल का है और इसके ऊपरी टोंचपर एक देहरी में प्राचीन समय के आदिनाथप्रभु के चरणयुगल स्थापित हैं / ऐसा कहा जाता है कि इस स्थान पर भरतचक्रवर्ती का हस्ती शुभध्यान से मर कर देवता हुआ और उसने भरत को नमस्कार करके कहा कि मैं तीर्थराज के ध्यान से देवता हुआ हूं। भरतचक्रीने हाथी के स्मरणार्थ 'हस्तगिरि' तीर्थ कायम किया / अस्तु, यहाँ की यात्रा करके चोक और जालिया माँव होकर वापिस पालीताणे आने से यह प्रदक्षिणा पूरी होती है। चोक से दो माईल जालिया और जालिया से 6 माईल पालीताणा होता है। १-गत चोवीसी के केवलज्ञानी जिनेश्वर का स्नात्राभिषेक करने के वास्ते ईशानेन्द्रने स्वर्गगङ्गा को भूमि पर उतारी। वह वैताढ्य-पर्वत की जमीन में गुप्त वहती हुई शत्रुजय के पास प्रगट हुई। इससे इसका नाम शत्रुजी, या सेतगंगा हुआ। इसका जल पवित्र, रोगहर, हलका और बुद्धिपर्द्धक है। इसके जाडेगल्ले में छाने हुए जल से जयणा पूर्वक स्मान करके गिरिराज पर जाकर आदिनाथ प्रभु की सेवा-पूजा करने से अनेक जन्मों के संचित पापकों का नाश होता है।