Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 212
________________ ( 199) अनुपम श्रीअयोध्या नगरी, जितशत्रु महाराय / विजयादेवी स्वमे गजको, देखत जागी जाय अघ भांजे, मेरो यह तारणहार है // चालो० // 1 // स्वम अर्थ ज्योतिषी कहते, पुत्र होगा बलवान / द्वितीय तीर्थंकर अजितजिनेश्वर, जन्म्या श्रीअभिधान अघ भांजे, मेरो यह तारणहार है / चालो० // 2 // सकल कलासे दीपत जगमें, महा प्रभु प्रियकार / विश्ववंद्य श्रीअजितनाथजी, तार तार मुझ तार अघ भांजे, मेरो यह तारणहार है // चालो० // 3 // माघशुक्ल श्री चौथ के दिन, करी भचाऊ जात / धूराजी सुत प्रतापचंद और, साथे इनकी मात अध भांजे, मेरो यह तारणहार है ॥चालो० // 4 // तपगच्छ नायक सूरि सितारे, चमके त्रिजग मांय / श्रीराजेन्द्रसूरीश्वर की नित, यतीन्द्र वारी जायअघ भांजे, मेरो यह तारणहार है / चालो० // 5 // मोटीचीरईमंडन-श्रीपार्श्वजिन-स्तवनम् / . देशी-पैदा हुए हैं भगवन् . मिल गये हैं मुझे श्री, पारस प्रभुजी प्यारे / भटकत फिरत दुनीमें, उनके हैं तारणहारे // टेर० //

Loading...

Page Navigation
1 ... 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222