Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh

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Page 213
________________ (200) पारस जो नाम तेरा, वैसा ही गुण में गेरा / मजधर से नाव मेरा, करदो प्रभुजी प्यारे ॥मिल० // 1 // उपसर्ग केई आये, निर्भय हो दुहाये / जरी मनको न डिगाये, देखे प्रभुजी प्यारे // मिल० // 2 // कईएक कष्ट पाये, क्रोधांश जरी न लाये / / हम पार्क कुमरजी गाये, सुणलो प्रभुजी प्यारे ।मिल०॥३॥ अश्वसेन वंशी सारे, वामा के हैं हुलारे / भविजीव केई तारे, पारस प्रभुजी प्यारे // मिल० // 4 // मोटीचीरई में देखे, लगा है दिन लेखे / जो ज्ञानी भावे पेखे, पारस प्रभुजी प्यारे॥ मिल० // 5 // मुरत शान्त सारी, लगती मुझे दुलारी / भवसिन्धु सेति तारी, पारसप्रभुजी प्यारे // मिल०॥६॥ देवन के देव तुम हो, तुमसा न कोई जग हो / मेटे प्रभु मगन में, पारसप्रभुजी प्यारे // मिल० // 7 // प्रभु आपकी है माया, राजेन्द्रसूरि राया / यतीन्द्र पूजे पाया, पारसप्रभुजी प्यारे / मिल० // 8 // अंजारमंडन-वासुपूज्य-शान्ति-पार्श्वजिन-स्तवनम् / दोहावासुपूज्य जिन बारमा, अंजारे सुखकार / दान शील तप भावना, होवे एका कार // 1 //

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