Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ ( 109 ) पहिरते और उसके ऊपर सवा हाथ चोडा अंगोछा (दुपट्टा ) लपेट लेते हैं। स्त्रियों का पहरवेश थरादरी की स्त्रियों के समान है। कच्छदेश में मुख्यतया 'आ उं खेत्र वंजाती तोके हलणुं अय तो हल, न कां उं वंजाती' इस प्रकार की कच्छी भाषा बोली जाती है, परन्तु गाँवों गाँव भुजनरेश के तरफ से सरकारी निशालें, मदर्से, स्कूल हो जाने से अब गुजराती बोली (भाश) का प्रचार भी अधिक होने लगा है। लिखने में तो गुजराती अक्षरों का ही उपयोग किया जाता है / कच्छ में सर्वत्र रेल्वे नहीं है, भचाऊ से अंजार तक, और तूणीबंदर से अंजार, अंजार से रतनाल, कुकमा तथा माधापर होकर भुज तक रेल्वे लाइन है, जो भुजस्टेट के तरफ से है। कच्छदेश की मुख्य राज्यधानी भुज-शहर है जिसको सं० 1605 में महाराव श्रीखेंगारजी प्रथमने किले सहित वसा कर कायम की है। कच्छ में मांडवी, भुज, मुंद्रा, सुथरी, जखौ, नलिया और अंजार, ये अच्छे शहर हैं और इनका परदेश से व्यापारादि संबन्ध होने के कारण रीत रिवाज भी अच्छा है / अबड़ासा परगना रसालु है, इसमें आम, मेवा, सांटा आदि सभी चीजें पैदा होती हैं और जैनों का 1 गुजराती, मारवाड़ी, सिंधी और अरबी भाषा के मिश्रण से कच्छी भाषा बनी है / 2 वागड़कच्छ के अखात के तट पर यह नया बनाया गया है / ...