Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ ( 131 ) यहाँ मेला भराता है जिसमें 15, या 20 हजार दर्शक एकत्रित होते हैं और सालियाना अंदाजन 40 हजार रुपयों की आवक होती है, जिसको यहाँ का महन्तबावा लेता है। महन्त के तरफ से प्रतिदिन दो रसोडे चालु रहते हैं जिनमें बावा, योगी, खाखी, फकीर आदिको रहें वहाँ तक भोजन मिलता है। अगर कोई जैनमुनि, या जैनसाध्वी आ जाय और वे दो चार दिन यहाँ ठहरना चाहें, तो उनके लिये उनके योग्य आहार पानी की व्यवस्था की जाती है / महन्त सर्वमतों को समानरूप से माननेवाला है, इससे यहाँ किसी मत के साधु को किसी तरह की तकलीफ नहीं पड़ती। यहाँ धर्मशाला और शंकर के देवल में सर्वत्र वीजली की रोशनी लगी हुई हैं, और उसका कारखाना भी है। पानीका नल भी है, जिसमें दो माइल दूर गंगावाव से मसीन द्वारा पानी लाया जाता है। शंकर के देवल में प्रवेशद्वार की दहिनी भींत पर एक शिलालेख लगा है१८-श्रीमद्गायकवाडसेवनसमुद्भुतप्रतिष्ठावनीवानाज्याहितविड्वलः स्वनयतः स्वायत्तसौराष्ट्रकः / अन्देकोऽङ्गभुजङ्गचन्द्रविमिते मासे सिते फाल्गुने, पुष्यः शनिवासरे हरितिथौ जान्टेशसन व्यधात् // 1 // यद्गांगाधरनोयेन, मया गंगाधरोऽर्चितः / मत्पूर्तपूर्वकेतनः, प्रीतो मेऽस्तु जटेश्वरः // 2 //