Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ ( 144 ) 150 स्थानकवासी और 200 घर वैष्णव हैं। मंदिरमार्गी ओशवाल पर्युषण में संवच्छरी के दिन जिनालय के दर्शनार्थ आते हैं, लेकिन धर्मध्यान तो स्थानक में ही जा करके करते हैं। यहाँ के सभी ओसवाल खेती करनेवाले और बेठ, मजूरी करनेवाले हैं। इसलिये इन ओशवालों को खेड्डत (किसान) भी कहा जाय तो कोई अनुचित नहीं है / 41 मोटी चीरई भुज जानेवाली सडक के दहिने तरफ यह गाँव है, इसमें कास्तकारों के 250 घर के सिवाय वीसा श्रीमाली जैनों के सामान्यस्थितिवाले 8 घर हैं / यहाँ छोटे दो उपाश्रय और एक गृहजिनालय है, जिसमें पार्श्वनाथ की चार अंगुल बडी श्याम प्रतिमा है, जो यहीं की सीमा के बॉकला (नाला) से मिली है / यहाँ के जैनों में कस्तुरचंद महाजन मुख का मीठा और हृदय का बडा धीठा चलता पुर्जा है / इसके विषय में यहाँ यह काहवत भी सर्वत्र मशहूर है कच्छवागडमां मोटी-चीराई छे गाम / वसे कस्तुरो वाणियो, चोरोमा राखे नाम // 1 // दर असल में यदि अवसर मिल जाय तो यह साधु साध्वियों के कपडे आदि उपकरण भी उठा ले जाते देर