Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
View full book text
________________ ( 108) व्यवहार नहीं है / कुछ वर्षों से दशाओं में पुनर्लग्न की प्रवृत्ति चालु होने से अब परस्पर भी खान पान में संकोच होने लगा है / श्रीमालीजनों का मुख्य धंधा व्यापार और धीरधार करने का है और ओशवालों का मुख्य धंधा स्वयं खेती करने का है / कच्छी ओशवाल अपने आपको 'ओहवाल' या 'लोक' नाम से जाहिर करते हैं और खेती करना, राजबेठ में जाना, कड़िया का काम करना, दाड़की जाना, वरतन मांजना और पानी भरना यही इनका धंधा है। कच्छी ओशवालों में जैन मूर्तिपूजक स्वल्प और वैष्णव तथा स्थानकवासी अधिक हैं / पचास वर्ष पहले इनमें देरावासी अधिक और वैष्णव स्वल्प थे। लेकिन स्थानकवासियों के अधिक परिचय से अब ये उस संप्रदाय में अधिक हो गये और होते जा रहे हैं / कच्छदेश में सर्वत्र आषाढसुदि 1 से वर्षारम्भ होता है और सारे देश में जोशी हरजीवनगंगाधर, तथा त्रिपाठी-हरजीवनहरीरामकच्छी रचित 'कच्छी-आषाढी-पंचांग' प्रचलित है, जो भुजनरेश की आज्ञा से हरसाल छपकर जाहिर होता है / मालवा, या मारवाड में चारण लोग जैसा वेश पहिरते हैं, वैसा ही पहरवेश कच्छभर में सभी जातिवाले लोग एकसां रखते हैं। आदमी ढीला पायजामा 1 जांगीयो, चेनी, बेंजनी, इंजार, और सूंथडा ये इस देश में प्रचलित पायजामा (खुशनी ) के नाम हैं।