Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (106 ) उतर कर और जामनगर से स्टीमर में बैठ कर कंडलाबंदर उतरना चाहिये / कंडलाबंदर से खुस्की रास्ते भद्रेश्वर 12 माइल दूर है, बंदर पर सवारी मिलती है और यह तीर्थ जामनगर के दरियामार्ग से 24 माईल ही दूर है। कच्छदेशीय जैनजनता में यह भी रिवाज सर्वत्र देखा गया कि १-साधु चाहे छः, या सात कोश का लम्बा विहार करके भरदुपहरी में तृषा, या क्षुधाऽऽकुल आया हो और कम्मर भी न खोल चुका हो उसके पहले श्रावकों के तरफ से पूछा जाता है कि महाराज ! व्याख्यान अभी वांचोगे या वाद में ? यदि साधुजीने व्याख्यान वांच दिया, या संध्या की वांचने की हामी भर ली, तब तो उनकी सेवा-भक्ति अच्छी होगी, अन्यथा नहीं / २-लम्बी दूर से विहार करके आने के कारण थकावट आ जाना स्वाभाविक है / इसलिये कोई मुनि किसी गाँव में दश पांच रोज विश्राम लेना चाहे तो उसको दर रोज दोनों टाइम फर्जियात व्याख्यान वांचना पडता है / अगर न वांचे तो उसकी सार-संभाल लेना और उसके पास श्रावकों का आना जाना बन्द / ३-साधु साध्वियों को मध्याह्न ( दुपहर ) के सिवाय कच्छदेश के किसी गाँव में गोचरी नहीं मिलती और गोचरी में सुबह बाजरी का अलूणा रोटा (टिक्कड ) तथा विना निमक मिरच की वाफी हुई गुवारफली का साग मिलता है। संध्या को पौन