Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ ( 107 ) घंटा दिन शेष रहते अनेक घरों में फिरने पर बमुस्किल से फीकी खीचडी और कढी मिलती है / चोविहार मी गोचरी के साथ ही चुकाना पडता है / ४-कच्छ के कंठी और अबडासा विभाग में तो व्याख्यान शेषकाल में भी दो टाइम और चातुर्मास में सुवह, दुपहर तथा रात्रि को तीन टाइम फर्जियात वांचना पड़ता है। अगर एक ही टाइम वांच के दूसरी टाइमों में न वांचा जाय, तो श्रोता (श्रावक) फौरन कहने लगते हैं कि-' मफतना रोटला खाओ छो, व्याख्यान केम नथी वांचता, तमारो बीजं शुं धंधो छ ? ' ५-कच्छ में अच्छा व्याख्यान देनेवाले और उसके साथ साथ सुन्दर रागवाले गायन गानेवाले मुनिवरों की अच्छी कदर है / जो व्याख्यान देना नहीं जानते, व्याख्यान वाचने में आलस रखते हैं, और स्तवन, सज्झाय आदि गाना नहीं जानते, या गाने में आलसु हैं उन साधु साध्वियों की बिलकुल कदर नहीं होती और कोई कोई श्रावक तो ऐसे साधुओं को कह भी देते हैं कि-'रोटला खुटाववा अहीं शा माटे आव्या छो ? ' वस; इन्हीं तकलीफों के कारण साधु साध्वी इस देश में कम विचरते हैं। कच्छीजैनों में वीसाश्रीमाली, दशाश्रीमाली, वीसा ओशवाल, और दशाओशवाल ये चार विभाग हैं, इनमें परस्पर भोजन व्यवहार है, परंतु लड़की देने लेने का