Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ पतिने गिरिराज श्रीसिद्धाचल की नव टोंकों की यात्रा संघ सह करके निज आत्मा को पवित्र की और नौमी के दिन स्वामिवात्सल्य करके संघयात्रा कार्य को अपूर्व उत्साह के साथ निर्विघ्न परिपूर्ण किया / इस प्रकार सिद्धक्षेत्र-पालीताणा से श्रीसंघ का प्रयाण होने वाद संघपति प्रतापचंद धूराजी के तरफ से घेटी 1, गारीयाधार 2, अमरेली 3, बगसरा 4. खारचिया 5, गिरनार 6, जूनागढ 7, वडाल 8, गोंडल 9, राजकोट 10, बेला 11, जेतपुर 12, खाखरेची 13, कटारिया 14, ललियाणा 15, बोध 16, भचाऊ 17, अंजार 18, भूवड 19, चीरई 20, जंगी 21, घाटीला 22, वांटावदर 23, हलवद 24, ढवाणा 25, कोंढ 26, करमाद 27, परमारनीटीकर 28, सायला 29, सुदामडा 30, नोली 31, पालीयाद 32, बोटाद 33, लाठीदड 34 और लाखेणी 35, इन गावों में सेर सेर शक्कर की ल्हाणी और जिनमंदिरों में केसर, धूप, तथा यथाशक्ति पूजाखाते रोकड रकम दी गई थी। माऊंझूझवा 1, गलत 2, खारचिया 3, जूनागढ 4, गोंडल 5, मोरबी 6, वेणासर 7, कटारिया 8, भद्रेश्वर 9, पेथापर 10, लाखेणी 11, पालीताणा 12 इन गाँवों में स्वामिवात्सल्य और नवकारसियाँ संघवी के तरफ से हुईथीं। यह संघ छोटा था और श्रावक श्राविकाओं की संख्या तीस से अधिक नहीं थी,