Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ proacroscow तीर्थयात्रा का फल 8 ध्याने पल्यसहस्रसंभवमधं प्रक्षीयतेऽभिग्रहे, तल्लक्षोत्थमनेकसागरकृतं मार्गे समुल्लंधिते / तीर्थस्याश्रयणेऽभ्युपैति सुगतिर्देवाननाऽऽलोकने, श्रीसौख्यादितदर्चने सुरपदं तत्तीव्रभावे शिवम् // 1 // तीर्थ का ध्यान करने से हजार पल्योपम का किया, तीर्थ जाने का अभिग्रह लेने से लाख पल्यो- 2 पम का किया हुआ, यात्रार्थ गमन करने से अनेक सागरोपम का किया हुआ पाप नाश होता है / तीर्थ का आश्रय लेने से सद्गति, दर्शन करने से सौभाग्य सुखादि समृद्धि, पूजा करने से स्वर्ग संपत्ति और है भावपूजा (तीव्रभावना) करने से मोक्ष प्राप्ति होती है है / जब अकेले ही तीर्थयात्रा करने से इतना लाभ 8 6 मिलता है, तब संघ निकाल कर छहरी पालते हुए अनेक श्रावक श्राविकाओं के सहित तीर्थसेवा और 8 2 उसमें भावपूर्वक जिनेश्वरों की द्रव्य भाव पूजा , करने से अपरिमित लाभ मिलनग कौन आश्चर्य है। wcowwwwcom