Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (79) कारोंने इसकी महिमा का वर्णन करते हुए यहाँ तक लिखा है कि अट्ठावय सम्मेए, पावा चंपाइ उजिंतनगे य / वंदित्ता पुण्णफलं, सयगुणं तंपि पुंडरीए // 13 // -अष्टापद, सम्मेतशिखर, पावापुरी, चंपापुरी और गिरनार आदि तीर्थों को वन्दन करने से जो लाभ होता है, उससे शतगुणा लाभ ( पुण्य ) एक बार पुंडरीकगिरि (सिद्धाचल ) को वन्दन करने से होता है-मिलता है। 'कुमारपालराजाना रासनु रहस्य' नामक गुजराती पुस्तक में लिखा है कि नन्दीश्वरद्वीप की यात्रा से दुगुणालाभ कुंडलद्वीप की, तिगुणा रूचकद्वीप की, चौगुणा गजदन्तागिरिकी, पांचगुणा जंबूवृक्षगतचैत्य की, षड्गुणाधिक धातकीखंडद्वीप की, 22 गुणा पुष्करद्वीप की, 100 गुणा मेरुगतचैत्यों की, 1000 गुणाधिक सम्मेतशिखर की, लाखगुणाधिक कंचनगिरि की, दश"लाखगुणाधिक अष्टापद की, और क्रोडगुणाधिक लाभ श्रीसिद्धाचल की यात्रा करने से मिलता है / पृष्ठ 299 /