Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ ( 77 ) इस पवित्रतम गिरिराज के शरण में आकर कार्तिक सुदि पूर्णिमा के दिन द्राविड-वारिखिल्ल महर्षी दश क्रोड मुनि के साथ, फाल्गुनसुदि 8 के दिन प्रथम तीर्थकर प्रभुऋषभदेवस्वामी पूर्वनवाणुं वार पधारे और फाल्गुनसुदि 13 के दिन शांव-प्रद्युम्न साढे आठकोड महर्षीयों के साथ, और चैत्रसुदि पूर्णिमा के दिन श्रीऋषभदेवप्रभु के प्रथम गणधर ऋषभसेन (पुंडरीकस्वामी) पांच क्रोड मुनि के साथ मोक्ष गये हैं / इसलिये उनकी यादगारी के निमित्त कार्तिकी-चैत्री पूर्णिमा और फाल्गुनशुक्लाष्टमी के यहाँ तीन मेले मुकरर हैं। चोथा मेला आषाढसुदि चतुर्दशी का है, जो वर्ष का आखिरी है / वर्षाऋतु के चार मास तक वारिश, नीलफूल और जीवजात की पैदाइश अधिक होने से गिरिराज की यात्रा वन्द रहती है। इसलिये चातुर्मास के पहले यात्रियों को यात्रा का लाभ लेने के निमित्त चौथा मेला कायम है। चारो मेलाओं में देशी और विदेशीय हजारों जैन जैनेतर आ कर गिरिराज की स्पर्शना, सेवा, पूजा श्रीसंघवात्सल्य का यथाशक्ति लाभ १-गिरिराज की सिद्धवडतलाटी के पास आइपरगाँव की आंबाबाडी में फाल्गुनसुदि 13 का मेला अच्छा भराता है / अष्टमी के मेला के बजाय यह अधिक रौनकदार है, इसमें दश हजार यात्री तक आते हैं और संघजमण ( स्वामिवात्सल्य ) भी होता है /