Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ ( 43 ) बने हुए हैं, और नीचे भोजनशाला और वर्द्धमान आमल ओलीतप खाता है / धर्मशाला के प्रवेशद्वार की दहिनी भीत पर शिलालेख नीचे मुताबिक लगा हुआ है દેસી રતનસી પીતાંબરની ભારજા બાઈ પુરીબાઈએ આ ધરમશાલા બંધાવી છે. સંવત્ 179 ના શ્રાવણ વદિ 3 ને ભેમ. તેના મુખીયા દેસી લાલચંદ હાથીએ જણાવી છે તપાગચ્છના સંઘ સારૂં. स्थनकवासियों में जो लींबडी समुदाय है, वह इसी गाँव के नाम से प्रकाश में आया है / लखतर, सीयाणी, बढवाण, चूडा, राणपुर, आदि गाँवों में जो स्थानकवासी हैं, वे प्रायः इसी लींबडीसंप्रदाय के हैं। इस संप्रदाय में साधु और आर्याओं (साध्वियों) की अधिक संख्या होने से गुजरात काठीयावाड में इस संप्रदाय के माननेवालों की संख्या अधिक है / लींबडी शहर में मूर्तिपूजक और स्थानकवासी दोनों संप्रदाय के जैनों के तरफ से प्रथक प्रथक् गुरुकुल बॉर्डिंगहाउस प्रचलित हैं, जिनमें स्व स्व धर्मानुकूल जैन बालक बालिकाओं को व्यावहारिक और धार्मिक शिक्षण दिया जाता है। 30 लालियाद यहाँ श्रीमालजैनों के 8 घर हैं, जो विवेकशून्य, धर्मप्रेम रहित और अन्यदेवोपासक हैं। एक छोटा उपासरा