Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (49) श्रीउमरालाग्रामे श्रीनवीनप्रासादे संघमुख्यश्रीसंघसमस्तश्रीमत्तपागच्छे श्रीवीसाश्रीमालीज्ञातीयेन श्रीअजितनाथजिनबिंबं स्थापितं, श्रीभट्टारक श्री 108 विजयदेवेन्द्रसूरीश्वरराज्ये सकलपंडितशिरोमणि पं० गणि अमरविजय-पं० श्री 7 प्रेमसत्कन स्वहस्तेन / ले० मु० झवेरसागरेण प्रभावसत्केन, श्रीअजितनाथजी प्रसादात्, श्रीशुभं भवतु / " जिनालय के वामभाग में धर्मशाला है, जो अहमदावादवाले हेमाभाई की बनवाई हुई है / इसमें वर्द्धमान आंबिल खाता है, जिसमें शा० हेमचंद मूलचंद के तरफ से पर्वतिथियों में और ओलीतप में आंबिल कराये जाते हैं / जिनालय के सामने दो मंजिला उपाश्रय है, जिसके नीचे के होल के एक विभाग में साध्वियों के उतरने का स्थान और उसके ऊपर जैनपाठशाला है, जिसमें जैन वालक स्वतः धार्मिक अभ्यास करते हैं / उपाश्रय की ऊपरी मेडी पर साधुओं के उतरने और व्याख्यान वांचने योग्य होल है / उपाश्रय की भींत पर एक शिला-लेख इस प्रकार लगा है આ ઉપાશ્રય શ્રી ઉમરાલાના રહેનારા તપાગચ્છી વીસાશ્રીમાલી દેસી દિયાલ બેચર તથા તેની ભાર્યા બાઈ રામે