Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (70) हैं / इनके सिवाय धातु की जिनप्रतिमा, ॐकार-हाँकार गत-जिनप्रतिमा, सिद्धचक्रगट्टा, आचार्यप्रतिमा, मुनिप्रतिमा, अष्टमंगल, देवी-देव की, और सेठ-सेठाणी की मूर्तियाँ अलग समझना चाहिये / इस पवित्रतम गिरिराज पर चढ़ने के लिये जयतलेटी के मुख्य रास्ते के सिवाय तीन रास्ते (मार्ग) और भी हैं-१ शत्रुजीनदी में स्नान करके 'भाठीवीरड़ा' के रास्ते से आदिनाथ के चरणयुग के दर्शन और बायें तरफ की मोखरका टेकरी पर देवकी षट्नन्दन के चरणयुगों के दर्शन किये वाद रामपोल दरवाजा आता है / यह भाठीना वीरडानी पाग' कहलाती है, शत्रुजीनदी से रामपोल तक अन्दाजन तीन माइल का चढाव है / 2 रोहिशालापाग जो गिरिराज के किले की रामपोल से दक्षिण सेतगंगा ( शत्रुजीनदी) के पास पहाड की ढालू जमीन पर है / इसका सीधी टोंच का चढाव रामपोल तक अन्दाजन चार माइल का है। इसके रास्ते में एक जलकुंड और एक छोटी देहरी में आदिनाथ के दर्शनीय चरणयुगल आते हैं। 3 घेटीपाग का रास्ता जो गिरिराज के किले से पश्चिम दो माईल का है / इसके नीचे समतल भूमि पर आदपुर नामका छोटा गांव है, जो भरतचक्री का वसाया हुआ माना जाता है और इसका प्राचीन नाम आदिपुर है। यह पुराने समय में अच्छा आबाद शहर था, जो इस समय