Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (66) शहर से भाता-तलेटी तक पक्की सडक बनी हुई है, तांगे, गाडी और मोटरें यहीं तक आती जाती हैं। भाता-तलेटी में ऊपर से यात्रा करके वापिस उतरनेवाले यात्रियों को भाता मिलता है और गर्मपानी पीनेवालों के लिये ठारा हुआ गरम पानी तैयार रहता है / भाता-तलेटी से वीश कदम आगे जाने पर 'जयतलेटी' आती है। यहाँ छोटी छोटी 28 देहरियाँ हैं, जिनमें जिनेश्वरों के चरण स्थापित हैं / यात्री प्रथम यहींपर गिरिराज को भेटने के लिये चैत्यवन्दन करते हैं, वस यहीं से गिरिराज का चढाव शुरू होता है, जो रामपोल तक अंदाजन चार माईल का है। जयतलेटी से तीर्थाधिराज की टोकों के किले तक चार हडे ( पहाडी टेकरियों के सम विसम चढ़ाव ) आते हैं / प्रथम हड़ा के चढाव में-७२ जिनालय सौधशिखरी बाबू का मन्दिर, धोली-परब और भरतचक्री के चरण; द्वितीय हडा के चढाव में कुमारकुंड, लीली-परव, वरदत्त गणधर के पादुका, आदिनाथ के पगल्या, नेमनाथ के पगल्या; तृतीय हडा के चंढाव में छालाकुंड, हीरा-परब, हिंगुलादेवी, और कलिकुंडपार्श्वनाथ के चरण, और चतुर्थ हडा के चढाव में-नानो मानमोडीयो, मोटो मानमोडियो, रोगहरकुंड, अमर-परब, चार शाश्वत जिनेश्वरों के पगल्या, . श्रीपूज्य की देहरी, हीरबाईकुंड, जे. पी. परब, द्राविड