Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ ( 58 ) और संध्या को चावल-खीचडी का भोजन जिमाया जाता है / रसोडे और भोजनशाला भी हैं, इनमें जैन साधु साध्विओं को गरमपानी और गौचरी व्होराई जाती है / इसके अलावा यहाँ वर्द्धमान-आंबिलतप खाता भी प्रचलित है, जिसकी स्थापना वयोवृद्ध सिद्धिविजयजी के शिष्य कल्याणविजयजी के उपदेश से हुई है। इसमें हमेशां स्थानीयजैन और बाहर के जैनयात्रियों को आँबिल करने का अच्छा प्रबन्ध है। शहर के मध्य में मोटा मन्दिर के पास सेठ आणंदजी कल्याणजी की पेढी है, जो सारे भारतवर्ष के जैनों की स्थापित पेढी मानी जाती है और गिरिराज की आम सत्ता पेढी को प्राप्त है। तीर्थाधिराज श्रीसिद्धाचल की सेवा के लिये नवाणुं यात्रा करने, चोमासा रहने, नवकारसी करने और संघजीमन (स्वामिवात्सल्य), टोली, उपधान, छट्ट-अट्ठमादितप करने करानेवालों से पेढी जो नकरा लेती है, वो नीचे मुताबिक है१ नवकारसी / 7 वरसीतप के पारणा 31) 2 संघ-जीमन 8 छट्ट-अट्टम के पारणा 3 / ) 3 नवाणुं टोली 111) 9 सिद्धितप का पारणा 2) 4 चोमासी टोली 5 / ) 10 मासीतप का पारणा 2) 5 चोसठ प्रहरी पौषध के | 11 उपधानप्रवेश का 12) पारणा 8) 12 प्रथमोपधान प्रवेश का२॥) 6 पर्युषण के पारणा 21) | 13 द्वितीयोपधान प्रवेश का 6)