Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ (63) 43 पवित्रतीर्थ-श्रीसिद्धाचल शहर पालीताणा से दक्षिण-पश्चिम कोण में सवा माईल के फासले पर शत्रुजय नामका पवित्र नगाधिराज (पहाड ) है, जो जैन शास्त्रानुसार प्रायः शाश्वत और भारतवर्ष में तीर्थाधिराज माना जाता है। उत्सर्पिणीकाल के प्रथमारक में 7 हाथ, द्वितीयारक में 12 योजन, तृतीयारक में 50 योजन, चतुर्थारक में 60 योजन, पंचमारक में 70 योजन, और षष्ठारक में 80 योजन / इसी प्रकार अवसर्पिणीकाल के प्रथमारक में 80 योजन, द्वितीयारक में 70 योजन, तृतीयारक में 60 योजन, चतुर्थारक में 50 योजन, पंचमारक में 12 योजन और षष्ठारक में सात हाथ का इसके विस्तार का प्रमाण है / ऋषभदेवभगवान के समय में यह 8 योजन ऊंचा, 50 योजन मूल में विस्तारवाला और 10 योजन ऊपर के भाग में विस्तारवाला था। इस प्रकार उत्सर्पिणी अवसपिणी काल में इसकी वंध-घट और घट-वध होती रहती है। परन्तु सर्वथा नाश किसी काल में नहीं होता, इसीसे यह तीर्थ प्रायः सदा शाश्वत माना गया है / इसके पूर्वदिशा में सूर्यवन, पश्चिम में चन्द्रवन, दक्षिण में लक्ष्मीवन और उत्तर में कुसुमवन था, जो वर्तमान में नामशेष ही रह गया है / इस तीर्थाधिराज के 108 गुणनिष्पन्न