Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ , 36 (62) 34 नगीनदास कपूरचंद की (1968) 35 नाहरबिल्डिंग (1969) 36 माणकचंद चंपालाल की (1969) 37 पुरबाई कच्छी की (1971) 38 महाजन का वंडा (1976) 39 धनपतिसिंह का मकान (1982) 40 भगवानजी तिलोकचंदकी 1985) 41 कल्याणमलभवन (1986 42 भावसार जैन की (1987) 43 शांतिमवन (1988) 44 जीवननिवास (1989) 45 चांन्दभवन (1990) शहरकी धर्मशालाओं में अमरचंद जसराज, हठीभाई, लल्लुभाई और मोतीशाहसेठ ये चार यात्रियों के उतरने और मसालिया, सातओरडा, भंडारी और ऊजमवाई ये चार धर्मशाला साधु-साध्विओं के उतरने में काम आती हैं, शेष अनुपयुक्त हैं। शहर बाहर की सभी धर्मशाला यात्रियों और साधु-साध्विओं के ठहरने के लिये ही काम आती हैं / धर्मशाला बनानेवाले मालिकों की देख-रेख बराबर न होने और धर्मशालाओं के मुनीम लांचखाउ होने से यात्रियों को यहाँ बड़ी दिक्कतें सहना पडती और घंटों खोटी होना पड़ता है। तीर्थ पवित्र है, लेकिन यहाँ के प्रायः सभी लोग यात्रियों को लूटने और तकलीफ देनेवाले हैं।