Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ ( 23) मन्दिर था, जो इस समय भूमिशायी हो गया है, उसके मूलनायक श्रीऋषभदेव की 4 // हाथ बडी खंडित प्रतिमा उसी जगह भंडार दी गई है / इसके बहुत से घडे हुए पत्थर अमदावाद में हठीभाइने लेजा कर अपनी बाडी के जिनालय में लगाये हैं / गाँव के बाहर पश्चिम तरफ बांगानदी के किनारे पर अति विशाल मोहक नक्सीदार ब्रह्माणस्वामी (सूर्यदेव ) का देवल है, जो इस समय भग्नाऽवशिष्ट है / इसके विशाल स्तंभों पर सं० 1016, 1315, 1342, और 1356 के चार लेख लगे हुए हैं जिनसे मालूम होता है कि-इसके स्तंभ और मंडप मुख्य देवल के बाद पटी० माहणसिंह शा० थारुसुत-णागदेव धारसिंहने बनवाये हैं। एक स्तंभ का लेख इस प्रकार है 7-" सं० 1356 वर्षे ज्येष्ठवदि 5 सोमे ब्रह्माणमहास्थाने महाराजकुलश्रीविक्रमसिंहकल्याणविजयराज्ये पाटी० राजा वीषड भार्या लखनदेवीभिः ब्रह्माणस्वामिमंडपं कारापितं / यहाँ ओशवालजैनों के 3 घर हैं, जो नहीं जैसे हैं। यहाँ के छोटे पहाड में एक श्वेतपाषाण की खान भी है, जिसमें सेलवाडा की खान जैसा श्वेतवर्ण पका पत्थर निकलता है, जो यहाँ के मन्दिरों में लगाया गया है और अब भी मंदिरों के वास्ते यहाँ से लेजाया जा रहा है।