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वृत्तमक्तिक
वर्णन ही है । श्रीगोपाललीला काव्य की अपेक्षा इसकी रचना अधिक प्रौढ़ और प्राञ्जल है ।' यह काव्य अद्यावधि प्राप्त है । बेचनराम शर्मा ने गोपाललीला के सम्पादकीय उपसंहार में अवश्य उल्लेख किया है कि आरम्भ के दो पत्ररहित इसकी प्रति मुझे प्राप्त हुई है । विशेष शोध करने पर संभव है इस महाकाव्य की अन्य प्रतियाँ भी प्राप्त हो जायँ ।
प्रस्तुत ग्रन्थ में चन्द्रशेखर भट्ट ने भी मत्तमयूर, प्रहर्षिणी, वसन्ततिलका, प्रहरणकलिका, मालिनी, पृथ्वी, शिखरिणी, हरिणी, मन्दाक्रान्ता, शार्दूलविक्रीडित और सग्धरा छन्द के प्रत्युदाहरण कृष्णकुतूहल काव्य के दिये हैं । इन कतिचित् पद्यों का रसास्वादन करने से यह स्पष्ट है कि वस्तुतः यह काव्य महाकाव्य की श्रेणि का ही है ।
३. रोमावलीशतकम् :- १२५ पद्यों का यह खण्ड-काव्य है । वि० सं० १५७४ में इसकी रचना हुई है । यह लघुकाव्य आलंकारिक भाषा में शृंगार रस से प्रोत-प्रोत है । इसमें कवि ने अनेक छन्दों का प्रयोग किया है । इसका आद्यंत इस प्रकार है :
आदि-श्रीलावण्याब्धिवेलाकलितनववयोवासशाला विशाला,
लीला नानाकानां त्वरितमपसरद्वात्यचेलाञ्चलश्रीः । हीलाभस्याग्रदूतीविहितपतिवशीभावशीलादिशिक्षा
भीलास्यं रोमराजी हरतु हरिरुचिर्वाच्यवाचां श्रिया नः ॥ १ ॥ व्यासस्यादिकवेः सुबन्धुविदुषो बारणस्य चान्यस्य वा
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वाचामाश्रितपूर्वपूर्ववचसामासाद्य काव्यक्रमम् । अर्वाञ्च भवभूति- भारविमुखाः श्रीकालिदासादय:,
सज्जाताः कवयो वयं तु कवितां के नाम कुर्वीमहि ॥ २ ॥ इत्थं जातविकत्थनेऽपि कवितामार्गे कथं सञ्चर
न्नञ्चेयं कविकीर्त्तिमित्यतितरां जागत्ति चिन्तां चिरात् । तत्कि काव्यमुपमेयकविभिः प्राङ्मद्दिते वाङ् मये,
भारत्या विभवेऽथवाऽतिसुलभं किं कस्य नाभ्यस्यतः ||३||
१ - 'गोपाललीला की अपेक्षा कृष्णकुतूहल विशेष चमत्कृति बना है ।' भारतेन्दु हरिश्चन्द्र : गोपाललीला भूमिका । २-'इदं च कृष्णकुतूहलाख्यं काव्यमारम्भे द्वितीयपत्ररहितं मयासादि ।' पृ० २५५