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वृत्तमौक्तिक
१५६६-१६५०) के प्रथम पुत्र कल्याणरायजी (जन्म सं० १६२५) दस वर्ष की अवस्था में केशवपुरी गुसाईंजी से मिले थे। अत: 'शतायु' से अधिक ये विद्यमान रहे यह निश्चित ही है। वि० सं० १५६८ में रचित 'बद्रिकाश्रमवृत्तिपत्रक'' नामक एक पत्र आपका प्राप्त होता है ; जिसका प्राद्यन्त इस प्रकार है :
गोभिवंतं प्रकृतिसुन्दरमन्दहास
भाषासमुल्लसितमञ्जुलवक्त्रबिम्बम् । श्रीनन्दनन्दनमखण्डितमण्डलाभं,
बालार्यमिश्रय(क) महं हृदि भावयामि ॥१॥
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विद्वद्भिः किल कृष्णदासकमुखैः शिष्यैरनेकैर्वृतः, _____ सोऽहं श्रीबद्री (दरी) वनान्तमगमं शुक्रे(ज्येष्ठ)शकाब्दे तथा । देवाम्भःपतिभूमिते (१४३३) सह नरं नारायणं वीक्षितुं,
तत्र व्यासमुनीशसङ्गतिरभूदाकस्मिकी मे शुभा ।।६।।
श्रीवल्लभाचार्य महाप्रभूणां नियोगतो बुद्धिमतां विभाव्य ।
श्रीरामकृष्णाभिधभट्ट एतल्लेखं व्यतानीत् पुरतश्च तेषाम् ।।११।। द्वितीय बृहद्भ्राता महाप्रभु वल्लभाचार्य भारत के प्रसिद्धतम प्राचार्यो में से हैं। इनका प्रतिपादित पुष्टिमार्ग आज भी भारत के कोने-कोने में फैला हुआ है । इनही के साहचर्य में रह कर रामचन्द्र भट्ट ने समग्र शास्त्रों का अध्ययन किया था और वे इन्हें केवल बड़ा भाई ही नहीं अपितु अपना गुरु भी मानते थे।
रामचन्द्र भट्ट वेदान्त, मीमांसा, व्याकरण, काव्य और साहित्य-शास्त्र के विशिष्ट विद्वान् थे । न केवल विद्वान ही अपितु वादजेता भी थे । अहर्निश शास्त्रार्थ में रत रहने के कारण कई पराजित वादी आपके विरोधी भी हो गये थे और इसी विरोध-स्वरूप प्रापको विष भी दे दिया गया था ।' इससे ऐसा प्रतीत होता है कि ये अल्पायु में ही स्वर्गलोक को प्राप्त हो गए थे।
महाकवि रामचन्द्र भट्ट ने अनेक ग्रंथों का निर्माण किया होगा ! वर्तमान में इनके रचित निम्नलिखित ग्रंथ प्राप्त होते हैं। जिनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है:१-यह पत्र वार्ता साहित्य एक बृहत् अध्ययन पृ० १४५ पर प्रकाशित है। २-भारतेन्दु ग्रंथावली, भाग ३, पृष्ठ ५६८