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भूमिका
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यज्ञनारायण के समय के श्रीरामचन्द्रजी पधराय दिए और कहा कि देश में जा कर सब गांव और घर आदि पर अधिकार और बेल्लिनाटि तैलंग जाति की प्रथा और अपने कुल अनुसार सब धर्म पालन करो। ऐसे ही श्रीयज्ञनारायण भट्ट के समय के एक शालिग्रामजो और मदनमोहनजी श्रीमहाप्रभुजी को देकर कहा कि आप आचार्य होकर पृथ्वी में दिग्विजय करके वैष्णवमत प्रचार करो और छोटे पुत्र रामचन्द्रजी को, जिनका काशी में जन्म हुआ था, अपने मातामह की सब स्थावर-जंगम-संपत्ति दिया ।'
यहाँ लक्ष्मण भट्ट के वसिष्ठगोत्रीय मातामह और मातुल का नाम प्राप्त नहीं है। सम्भवत: ये अयोध्या में ही रहते हों और इनकी स्थावर एवं जङ्गम सम्पत्ति भी अयोध्या में ही हो। पो० कण्ठमणि शास्त्री' ने लक्ष्मण भट्ट का ननिहाल धर्मपुरनिवासी बह वच् मौद्गल्यगोत्रीय काशीनाथ भट्ट के यहाँ स्वीकार किया है जब कि प्रस्तुत ग्रंथकार चन्द्रशेखर भट्ट एवं भारतेन्दु हरिश्चन्द्र वसिष्ठगोत्र में स्वीकार करते हैं । मेरे मतानुसार संभव है कि लक्ष्मण भट्ट के पिता बालंभट्ट ने दो शादियां की हों। एक बह वृच मौद्गल्यगोत्रीया 'पूर्णा' के साथ और दूसरी वसिष्ठगोत्रीया के साथ। फिर भी यह प्रश्न तो रह ही जाता है कि लक्ष्मण भट्ट बह वृच् मौद्गल्यगोत्रीया पूर्णा के पुत्र थे या वसिष्ठगोत्रीया के ? इसका समाधान तो इस वंश-परम्परा के विद्वान् ही कर सकते हैं । __ कवि रामचन्द्र आदि चार भाई थे । नारायणभट्ट उपनाम रामकृष्ण भट्ट और वल्लभाचार्य बड़े भाई थे और विश्वनाथ छोटे भाई थे। रामकृष्ण भट्ट कांकरवाड़ में ही रहते थे और पिताश्री लक्ष्मण भट्ट के स्वर्गारोहण के कुछ समय पश्चात् ही सन्यासी हो गये थे। केशवपुरी के नाम से ये प्रसिद्ध थे और दक्षिणभारत के किसी प्रसिद्ध मठ के अधिपति थे। डॉ० हरिहरनाथ टंडनलिखित 'वार्ता साहित्य एक बृहत् अध्ययन के अनुसार गोविन्दरायजी ( सत्ताकाल १-कांकरोली का इतिहास, भाग २, पृ०५ २-भारतेन्दु-ग्रंथावली, भाग ३, ०५६८ ३-'ये कांकरवाड़ में ही रहते थे। ये कुछ दिन पीछे सन्यासी हो गये तब केशवपूरी नाम पड़ा। ये ऐसे सिद्ध थे कि खड़ाऊ पहिने गंगा पर स्थल की भांति चलते थे।
भारतेन्दु ग्रंथावली भा० ३, पृ० ५६८ ४- हरिरायजी के प्रागट्य के सम्बन्ध में सम्प्रदाय के ग्रंथों में यह प्रसिद्ध है कि जब श्री कल्याणरायजी दस वर्ष के थे, तब एक दिन श्रीप्राचार्यजी के छोटे भाई केशवपूरी जो सन्यासी हो गए थे और दक्षिणभारत के किसी बड़े मठ के अधिपति थे वहां आए और उन्होंने श्रीगुसाईंजी से अपनी गद्दी के लिये एक बालक मांगा, जिस पर आपने कहा कि जिस बालक के पास ठाकुरजी नहीं होंगे उन्हें दे दिया जायगा। श्रीकल्याणरायजी के पास ठाकुरजी नहीं थे। इसलिये उन्हें देना निश्चित हुआ।
वार्ता साहित्य एक वृहत् अध्ययन पु० ३६७