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वृत्तमौक्तिक
सर्वशास्त्र और सर्व दर्शनों का अध्ययन प्राचार्यश्री से ही किया था।' अतः पितृभक्ति, भ्रातृ-प्रेम एवं भक्तिवश ही इनका सर्वत्र स्मरण किया जाना स्वाभाविक ही है।
अतएव यह तो स्पष्ट ही है कि रामचन्द्र भट्ट गोत्रापेक्षया पृथक्-पृथक व्यक्ति न हो कर लक्ष्मण भट्ट के पुत्र एवं वल्लभ के लघुभ्राता थे और दत्तकरूप में वसिष्ठ-वंश में जाने के कारण भारद्वाजगोत्रीय न रह कर वसिष्ठगोत्रीय हो गये थे । संभव है इसी कारण से पुष्टिमार्गप्रवर्तक वल्लभाचार्य के जीवनवृत्तसम्बन्धी समग्र-साहित्य में रामचंद्र भट्ट एवं इनकी परम्परा का कोई उल्लेख नहीं हुआ हो ! अस्तु ।
वंश-परिचय गोविन्दाचार्य से न देकर ग्रंथकार-सम्मत वसिष्ठगोत्रापेक्षया रामचन्द्र भट्ट से दिया जा रहा है। रामचन्द्र भट्ट
इनके पिताश्री का नाम लक्ष्मण भट्ट और मातुश्री का नाम इल्लम्मागारू था। इनका जन्म अनुमानत: वि० सं० १५४०३ में काशी में हुआ था । लक्ष्मण भट्ट का स्वर्गवास वि० सं० १५४६ चैत्र कृष्णा नवमी को दक्षिण में वेंकटेश्वर बालाजी नामक स्थान पर हुआ था । स्वर्गवास के पूर्व ही लक्ष्मण भट्ट ने अपने मातामह की संपूर्ण चल और अचल संपत्ति इनको प्रदान कर अयोध्या भेज दिया था। इस सम्बन्ध में भारतेन्दु हश्चिन्द्र 'वल्लभीयसर्वस्व' में लिखते हैं :
_ 'लक्ष्मण भट्टजी साक्षात् पूर्णपुरुषोत्तम के धाम अक्षरब्रह्म शेषजी के स्वरूप हैं, इससे आपको त्रिकाल का ज्ञान है । सो जब आपने अपना प्रयाण समय निकट जाना तब कांकरवार से बड़े पुत्र रामकृष्ण भट्टजी को बालाजी में बुलाया और वहीं आपने डेरा किया । पुत्रों को अनेक शिक्षा देकर श्री रामकृष्ण भट्टजी को श्री
१-'श्रीमल्लक्ष्मणभट्टवंशतिलकः श्रीवल्लभस्य प्रियः, शिष्यस्सच्चरणप्रसादशरणो यो रामचन्द्र:कविः।'
[ भारतेन्दु हरिश्चन्द्रः गोपाललीला-भूमिका ] 'पुरुषोत्तमक्षेत्रे समागत्य ज्येष्ठभ्रातुः श्रीवल्लभाचार्यात्"..........."सकाशात् सर्वाणि शास्त्राणि मतानि च समधीत्य ।'
[बेचनराम शर्माः गोपाललीला-उपक्रमवर्णन ] २-लक्ष्मण भट्ट जी के परिचय के लिए देखें, कांकरोली का इतिहास भाग २ ३-कृष्णमाचारी : हिस्टोरी ऑफ दी क्लासिकल संस्कृत लिटरेचर, पृ० २६१ ४-भारतेन्दु ग्रंथावली भाग ३, पृ० ५७५