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वृत्तमौक्तिक
रामचन्द्र भट्ट ने स्वप्रणीत 'गोपाललीला-महाकाव्य', 'रोमावलीशतक' एवं 'रसिकरञ्जनं' की पुष्पिकानों में स्वयं को लक्ष्मणभट्ट का पुत्र स्वीकार किया है :
'इति श्रीलक्ष्मणभट्टात्मजश्रीरामचन्द्रविरचिते गोपाललीलाख्ये महाकाव्ये कंसवधो नाम एकोनविंशः सर्गः।'
। गोपाललीला महाकाव्य की पुष्पिका ]' 'इतिश्रीलक्ष्मणभट्टात्मजश्रीरामचन्द्रकविकृतं रोमावलीशृङ्गारशतकं सम्पूर्णम्।'
[ रोमावलीशतक की पुष्पिका ] ' 'इति श्रीलक्ष्मणभट्ट सूनुश्रीरामचन्द्रकविकृतं सटीकं रसिकरञ्जनं नाम शृङ्गारवैराग्यार्थसमानं काव्यं सम्पूर्णम् ।'
[ रसिकरञ्जन की पुष्पिका ] ___ कवि ने 'कृष्णकुतूहल' महाकाव्य में स्वयं को लक्ष्मणभट्ट का पुत्र और वल्लभाचार्य का अनुज स्वीकार किया है :'श्रीमल्लक्ष्मणभट्टवंशतिलक: श्रीवल्लभेन्द्रानुजः ।'
[ कृष्णकुतूहलमहाकाव्य-प्रशस्तिपद्य ]४ रोमावलीशतक में कवि ने स्वयं को लक्ष्मणभट्ट का पुत्र, वल्लभ का अनुज और विश्वनाथ का ज्येष्ठभ्राता लिखा है :
'श्रीमल्लक्ष्मणभट्टसूनुरनुजः श्रीवल्लभः श्रीगुरोः, अध्येतुः सममग्रजो गुणिमणेः श्रीविश्वनाथस्य च ।'
[ रोमावलीशतक-पद्य १२५ ] इन उल्लेखों में भारद्वाजगोत्र का कहीं भी उल्लेख न होने पर भी लक्ष्मणभट्ट एवं वल्लभाचार्य का उल्लेख होने से यह स्पष्ट है कि ये भारद्वाजगोत्रीय थे।
रामचन्द्र भट्ट ने 'कृष्णकुतूहल-महाकाव्य' के अष्टम सर्ग के प्रांत में स्वयं का वसिष्ठगोत्र स्वीकार किया है :
१-भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा सन् १९२६ में प्रकाशित २-राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर, ग्रं. नं० ११२३५ ३-काव्यमाला चतुर्थ गुच्छक में प्रकाशित ४-गोपाललीला-भूमिका