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मा. वि.नधनसूरि-स्मारम्य थ કરીએ અને એમના સઘનાયક પદને લાભ જૈન શાસનને અને દેશને લાંબા સમય સુધી મળતા રહે એવી પ્રાર્થના કરીએ,
- रतिलाल द्वीपय ६ हेसाई, ता. २१-१२-१७५ जैन (साप्ताहिङ ); भावनगर, ता. १०-१-१७१
महान् ज्योतिर्धर
परम पूज्य, परम दयालु, जैन शासन के महान ज्योतिर्धर, तपागच्छ नायक, आचार्य श्रीमद् विजयनन्दनसूरीश्वरजी महाराज का २०३२ की माह वदी १४, दिनांक ३१-१२-७५ को शाम पांच बजकर २५ मिनिट पर धन्धूका से सात मील दूर स्थित तगडी गांव में स्वर्गवास हो गया ।
पूज्य आचार्यश्री ने अहमदाबाद के पांजरापोल उपाश्रय से पोष बदी ३ को पालीarer के लिए विहार किया था। उनके साथ १५ अन्य साधु व मुनिराज थे । आपकी यह विहारयात्रा सानन्द चल रही थी । पूज्यश्री पूर्ण स्वस्थ व प्रसन्न थे । गतवर्ष के अंतिम दिन शाम पांच बजे आपको दिल का दौरा पडा । डाक्टरों को तत्काल बुलाया गया, लेकिन वे चिरनिद्रा में लीन हो गए !
नव वर्ष की प्रातः पूज्यश्री का पार्थिव शरीर उनके जन्मस्थान बोटाद ले जाया गया, जहां उसे भक्तजनों के दर्शनार्थ जैन उपाश्रय में रखा गया । पूज्यश्री के अंतिम दर्शनों के लिये पूरे दिन दर्शनार्थियों का तांता लगा रहा। अश्रुपूरित नेत्रों से आबालवृद्ध नर-नारी आकर अपने श्रद्धासुमन अर्पित कर पुण्यात्मा के पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन का लाभ प्राप्त करते रहे ।
शव यात्रा शाम तीन बजे प्रारंभ हुई और ५|| बजे शोकाकुल नरनारियों की अपार भीड की उपस्थिति में भतीजे श्री जयन्तीभाई ने पूज्य आचार्यश्री का अंतिम संस्कार सम्पन्न किया । इस अवसर पर काफी संख्या में साधु-साध्वियां आंखों में आंसू भरे उपस्थित थे ।
आचार्यश्री ज्योतिष के सर्वमान्य विद्वान थे। किसी स्थान पर प्रतिष्ठा आदि का मुहूर्त निकलवाना होता था तो उन्हीं से विनती की जाती थी । उनके द्वारा निकाला गया मुहूर्त सर्वमान्य होता था ।
पूज्य आचार्यश्री के आकस्मिक निधन का समाचार पूरे देश में बिजली की तरह फैल गया और लोग शोक में डूब गए ।
- बल्लभ सन्देश (मासिक); जयपुर, जनवरी, १९७६
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