Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 19
________________ अतो दुःखतरं किं नु II. 20.40a अतो दुःखतरं लोके II. 104.13a अतो दुःखतरं वनम् II. 28.9d.. " "I8d " , 20d अतो निमित्तं त्रस्तोऽहम् IV. 32.8a अतो निस्पन्दमभवत् VII. 16.7c अतो नु किं दुःखतरम् II. 59.25a अतोऽनुरूपं स्नेहं च VII. 9I.20c अतोऽन्यदपि यत्कार्यम् III. 42.56c अतो भूयोऽपि नेदानीम् II 46.22a अतो मूलाः क्रियाः सर्वाः I. 53.25a अतो यत्त्वामहं ब्रूयाम् II. 4.15c अतो वीर न शासनम् VII. I08.15b अतोषयच्चापि पितामहं विभुम् VII.9.48c अतोषयन्महाराजम् II. 18.15a अतोऽहं धारयाम्यद्य IV. 8.36c अतो हि संचित्तय राज्यमात्मजे II. 8.39c अतो हृष्टजनाकीर्णाम् VII. 64.7a अत्यकामच्छुभः काल: VII. 42.26a अत्यकामन्महावेग: V. I.70c अत्यङ्कुशमिवोद्दामम् II. 23.20a अत्यद्भुतमचिन्त्यं च I. 67.2IC अत्यद्भुतमिदं दिव्यम् VII. 76.34c अत्यद्भुतमिदं ब्रह्मन् I.45.2a अत्यद्भुतमिदं वाक्यम् VII. 82.9a अत्यन्तगुणवन्ति च II. 71.25d अत्यन्तघोरो व्यचरन् III. 39.40 अत्यन्ततृषितो वन्यः III. 16.21c अत्यन्तनियताहारैः III. 35.14a अत्यन्तं निगृहीतास्मि II. 20.42a अत्यन्तं रघुनन्दन I. 43.Iod अत्यन्तसुकुमारस्य II. I2.23a अत्यन्तसुखसंचाराः III. 16.10a अत्यन्तसुखसंवृद्धः III. 16.30a अत्यन्तसुखसंवृद्धाम् III. I.18a अत्यन्तसुखसंस्पर्शम् III. 73.37c अत्यन्तसुखसेविनीम् II. 97.23b अत्यरिच्यत वीर्यवान् I. I7.13d अत्यर्थं च मदग्लानाः V. 62.72a अत्यर्थं चासतां मार्गम् VI. 29.2c अत्यर्थं सक्तमनसः V. 9.58a अत्यर्थं स्वर्गिणं तत्र VII. 77.IIC अत्युग्रवेगा निशिताः IV. 54.19a अत्युच्चशिशिराः शिलाः IV. 42.9d अत्युन्नतमहोत्साह: VI. I09.14C अत्येति रजनी यातु II. I05.19a अत्र काषायिणो वृद्धान् II. 16.3d अत्र किंपुरुषीभूत्वा VII. 88.22a अत्र तावद्यथावुद्धिः IV. 32.5a अत्र तेऽहं प्रमोक्ष्यामि II. 9.47c अत्र ते पुरुषव्याघ्र I. 29.23c अत्र त्वं शोचनीयोऽसि III. 41.I6c अत्र देवाः प्रयच्छन्ति III. II.93c अत्र देवाः सगन्धर्वाः III. II.8ga अत्र देवाश्च यक्षाश्च III. II.9a अत्र पूर्व महादेवः VI. 123.20a अत्र ब्रूहि यथातत्त्वम् III. 50.15a VI. 39.24c अत्र मन्दोदरी नाम VI. 123.14C अत्र मन्युर्न कर्तव्यः VI. 37.23a अत्र मां कैकयीपुत्रः VI. 123.50a अत्र मे नास्ति संशयः II. 9.24b अत्र योजनबाहुश्च VI. 123.42a अत्र राक्षसराजोऽयम् VI. I23.22a अत्र राम इति ज्ञात्वा II. 68.170 अत्र विंशतिकोट्यस्तु II. 70.5a अत्र सप्तजना नाम IV. 13.18a अत्र सा मृगशावाक्षी VI. 24.7a " 42.8a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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