Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra
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अवस्थितमसंभ्रान्तम् V. 58.39c | अवार्य सर्वभूतानाम् VI. 90.60a अवस्थितं राघवमित्युवाच IV. 24.3d अवासयं मृत्युमिवात्मनस्त्वाम् II. I2.105b अवस्थितं विस्मितजातसंभ्रमम् V. 47.8c अवासर्पत्ततः पुन: VI. 22.57d अवस्थितोऽहं प्रगृहीतचापः VI. 67.143b अविकत्थन्वधिष्यामि VI. 88.29c अवस्थितोऽहं शरचापपाणि: VI. 59.96c अविक्रेयं सुतं ज्येष्ठम् I. 61.I7c अवहासं ततो मुक्त्वा VII. 18.8c अविक्लवमसंन्नान्तम् VI. I06.12a अवाकिरत्सुमहता I. 26.16c
अविक्षोभ्याणि रक्षांसि VI. 5.17a अवाक्शिरसमासीनम् II. 38.12c
अविघ्नं क्रियतां सर्वम् I. 73.16c अवाक्शिरा दाशरथाय तस्मै VII. 75.19b | अविघ्नं पुष्पयोगेन VI. 126.54c अवाक्शिरा दीनमनाः VII. 98.2c अविचार्य पितुर्वाक्यम् II. I0.IIC अवाक्शिरा दीनमना न हृष्टः II. 7I.46c अविचिन्त्य तु तां वेलाम् VII. 9.16a अवाक्शिराः प्रपतितः V. 58.68c
अविच्छिन्नाश्रुवेगस्तु IV. 6.19a अवाक्शिरास्तथाभूत: VII. 76.Ic अविज्ञातेन राक्षसैः V. 2.41b अवाक्शिरास्त्रिशङ्कुश्च I. 60.32a
अविज्ञानान्नृपसुता II. I2. I0a अवाङमुखमथो दीनम् VII. I06.1a अविज्ञाय कथं बाल्यान् IV. 18.4c अवाङ्मुखाश्च दीनाश्च VII. 7I.Iga अविज्ञाय पितुश्छन्दम् II. II8.5Ic अवाङ्मुखो दीनमनाः VII. 44.13a अविज्ञाय फलं यो हि II. 63.9a " " " 52.50
अविज्ञाय शुभानने II. 30.28b , , , 105.17a [अ]विज्यमाविध्य कार्मुकम् VI. 45.24b अवाङ्मुखो बाष्पगल: VII. 47.10c अवितृप्तस्य कामेषु IV. 35.9c अवाङ्मुखोऽभून्मनुजेन्द्रपुत्रः IV. 33.39c अविदूरं ततो गत्वा VI. 87.2a अवाच्यं वदतो जिह्वा V. 58.72a
अविदूरस्थितान्सर्वान् VI. 32.42n अवातरन्महातेजाः IV. 38.16a.
अविदूरादयं नद्याः II. 50.28a [अ]वात्सीः काकुस्थ शर्वरीम् II. 89.5b अविदूरादितो वनम् II. II6.20b अवाप राज्यं त्रिदशाधिपो यथा IV. 26.42d | अविदूरे निशाचरः III. 30.16d अवाप्तधर्माचरणम् VI. II9.31a
अविदूरे स्थितां दृष्ट्वा II.7.70 अवाप्तः सुमहान्वधः II. 21.32d
अविदूरे स्थितो रामम् VI. I22.IC अवाप्तो विपुलामृद्धिम् II. II8.32c
अविदूरे हरीश्वरः IV. 8.12b अवाप्नुयामः कीर्ति वा VI. 66.25b अविध्यत तदा वाली IV. II.40c अवाप्नोति हि सोऽनन् VI. 63.20c अविध्यत्परमक्रुद्धः VI. 90.25c अवाप्य कृत्स्नां वसुधां यथावत् II. I00.76c , , 90.33a अवाप्य सीता रघुवंशजप्रियाम् IV. 40.7IC अविन्ध्यो नाम मेधावी V. 37.12a. अवाप्स्यति नरर्षभः II. 8.16d
अविप्रहतमैश्वाकः I. 24.13a अवार्यमाणः प्रविवेश सारथिः II. 15.48c अविप्रहतमैक्ष्वाको III. 69.2c अवार्यमाणः सौमित्रिः IV, 33.18c । अविभक्तानि साधूनाम् IV. 8.7c
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