Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 98
________________ आनयामास लक्ष्मणः II. 55.3od आनयित्वा तु तां दीनाम् VI. 111.220 आनयिष्यन्ति मैथिलीम् IV. 38.33d आनयिष्यन्ति राघव VI. 3.32f आनयिष्यसि चेत्सीताम् III. 41.1ga आनयिष्यामहे सीताम् IV. 45.11c आनयिष्यामि जानकीम् VI. 4. 6d आनयिष्यामि ते चेतः VII. 57.120 आनयिष्यामि मैथिलीम् III. 43.8d अनियिष्यामि रावणम् V. 1.40b आनयिष्यामि वा लङ्काम् V. 1. 4ra आनयिष्यामि विक्रम्य III. 36.14 आनयिष्यामि वै रामम् II. 79.11 आनयिष्याम्यहं ज्येष्ठम् II. 79.9c आनयिष्याम्यहं तानि IV. 6. 120 दिपिण्यकम्II. 103.20a आनयेयं कथं पुरीम् VII. 45.6d आनयेयं तवादेशात् IV. 17.51C आनयेहाशु राघवम् II. 15.26d आनयैनं महाबाहो III. 43.100 आनयनमिति क्षिप्रम् III. 40.19c आनयैनं हरिश्रेष्ठ VI. 18.34a आर्चायतलोचना II. 25.26d आनाययितुम क्लिष्टम् II. 14.21c आनाय्य च महाबाहुम् II. 74.31a आनाय्य तु महीपाल I. 9.13a आनिन्युरुपहारांश्च VII. 92.4c आनिन्युर्वानरर्षभाः V. 57.34d आनिन्युर्वानरागत्वा IV. 37.32c आनिन्युः स्नानशिक्षाज्ञाः II. 65.8c आनिलः सर्वगुणान्वितः VI. 128.57b आनीतं प्रेक्ष्य तज्जलम् VI. 128.57d आनीतं मुनिपुंगव I. 67.11b आनीतस्त्वमिमं देशम् III. 30.35c आनीता क्रोशती बलात् V. 26.3d Jain Education International आनीता जनकात्मजा VI. 12. 12d आनीता रामपत्नी सा VI. 111.6ga आनीताऽसि समुद्रस्य V. 24.30c आनीतोऽवर्षयद्देवः I. 9. 18c आनीय च वनात्सीताम् VI. 36. Sa आनीयतामितः सेना II. gr.roa आनी स्वस्तिमान्भवेत् III. 48.23d आनीय हरियूथपाः V. 35.37d आनीयोवाच सौमित्रिम् VII. 46.5a आनुकूल्याद्धनेशस्य VII. 41.12 आनुकूल्येन धर्मात्मा V. 38.56c आनुपूर्व्या च वृत्तं तत् V. 1.3ra आनुपूर्व्याच्च धर्मज्ञः II. go. 6c आनुपूर्व्यात्तु सुग्रीवः IV. 45.20c आनुपूर्व्यान्निषेदुश्च II. 91.40a आनृण्यं तु गतं तस्य IV. 20. 200 आनृशंस्यं कृतज्ञता V. 37.15b आनृशंस्यमथार्जवम् IV. 55.2b आनृशंस्यमनुक्रोशः II. 33.12a आनृशंस्यं परो धर्मः V. 38.39a आनेतुं च नृपं तथा I. 67.27f आनेतुमिच्छामि हितं वनस्थम् II. 82.30c आनेतुं भ्रातरौ वीरौ II. 68.3c आनेतुं वानरान्युद्धे IV. 35.19c आनेष्यति पराक्रम्य III. 49.35c आनेष्यन्तीह सत्कृताः I. 10.5d आनेष्यामि च वैदेहीम् III. 31.33c आनेष्यामो वयं विप्रम् I. 9.17c आपगा इव ता रेजुः V. 9.50c आपगाः कृतपुण्यास्ताः II. 48ga आपगा गरुडेनेव II. 47.17c आपगापतिमव्ययम् VI. 125.9d आपगाभिश्च संवीता IV. 61.8c आपगाभिः समावृतः VI. 22.22f आपगायास्तु पूर्णायाः III. 31.23c For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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