Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 132
________________ १२५ उच्छ्रित्य बाहू चुक्रोश II. 57.270 उत्तमाङ्गानि राक्षस: उच्छृसन्तं पुनः पुन: VI. I0I.15d उत्तमाधममध्यमः VI. 6.ud उच्यतां किं च कुर्महे VII. 49.15d " माः, ,, 6b उच्यतां गच्छ सुग्रीवः IV. 30.80a , ,,,. IIb उच्यतां न समर्थ यत् VI. 6.40 उत्तमानां च गन्धानाम् II. I7.4a उच्यता हि क्षमं यत्तत् IV. 49.10c उसमा बुद्धिनिश्वये II. 9.39b उच्यता वानराः सर्वे VI. 61.32a उत्तमासिपरश्वधम् VI. 75.54b उच्यमानोऽपि परुषम् II. I.I0c उत्तमास्तरणास्तीर्णे V. 49.9c उच्यमानो हि भरतः II. 97.18a उत्तमास्त्रविदां वरः VI. I00.5b उच्यमानं न गृह्णासि VI. III.Iga उत्तमेनामिसंयुक्ता II.:7.8a उच्यमानं हितं वाक्यम् VI. 17.15c उत्तमैः स्फाटिकैरपि II. I7.4d उज्झितायास्त्वया नाथ II. 30.20c उत्तमौ रूपसंपन्नौ VI. 20.5a उटजं च ददर्श ह II. 99.4d उत्तमं रक्षस मध्ये VI. 90.46c उटजे राममासीनम् II. 99.25c उत्तमं राक्षसावासमू V. 9.4a उताहो हतवीर्यास्ते VII. 31.4a उत्तरं कर्म यच्छेषम् V. 51.22c उत्कण्ठां तां हरिष्यामि VII. 40.19c. उत्तरं च न वक्तव्यम् VII. 62.20c उत्कण्ठिता ते मातेयम् II. 64.8c . उत्तरं च मया दृष्टम्. V. 58.1ogc उत्कर्षन्त्यां च रशनाम् V. 38.17a : उत्तरं चिन्तयामास V.:13.59c उत्कीर्ण भक्तिमिस्तथा II. 15.35b उत्तरं चैव सोत्तरम् IV. 31.12b .. उत्कृष्टकिणवक्षसम् III. 32.7d उत्तरं तीरमासाद्य I. 45.9a ,, . VI. 40.5d , VI. 17.10c उत्कृष्टपर्णकमलाम् V. 19.15a उत्तरद्वारमागम्य VI. 42.27a उत्क्रामन्तं दरीवन्तम् VII. 31.18c उत्तरद्वारमाश्रिताः VI. 3.27b उत्क्षिप्य च भुजी काचित् VI. II0.9a उत्तरद्वारमासाद्य VI. 4I.35a उत्क्षिप्य चोरिक्षप्य विनम्य देही VI. 40.16c उत्तरन्त्याश्च सेमायाः VI. 4.58c उरिक्षप्य लम्बाभरणम् VII. 7.28a उत्तरे नगरद्वारम् VI. 37.13c afaca ffant ai a VI. 111.109C , ,, ,, 31a उत्क्षिप्येदं वचोऽब्रवीत् VII. 36.rod उत्तर न हि वक्तव्यम् VII. 63.6a उत्ततार जलात्तस्मात् VII. 32.38c उत्तर नाम काव्यस्य VII. 98.21a उत्ततार स रावणः VII. 31.40b उत्तरं नोत्सहे वक्तुम् III. 45.28c उत्तमं जवमास्थाय V. 58.21a उत्तरः पयसां निधिः IV. 43.53b उत्तम पार्थिवात्मज IV. 27.7d उत्तरं पर्वतं राम I. 63.14a उत्तमः सर्वपक्षिणाम् IV. 66.4d उत्तरं पार्श्वमासाद्य II. 92.IIa उत्तमस्त्रीविमृदितौ V. 10.20a उत्तरं पुनरेवाह V. 58.106a उत्तमाच्युता तस्याः III. 52.26a . ! उत्तरं प्रियदर्शनाम् V. 35.86d . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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