Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 166
________________ तु वदतां तेषाम् V. 64. 23a ते कृतदारा वै VII. 12.270 19 ते शातिपक्षस्य II. 8.34a 33 तेन सखित्वं च VII. 13.31c " ते भाषमाणस्य II. 79.15a " ते राक्षसा राम VII. 8.21a ,, ते हरिशार्दूलाः VI. 4.37a तेर्षा निक्सताम् VII. 39.27a तेषां यया मास: VII. 39.2ga " तैर्वानरैः शरैः VI. 43.42a " तो निश्वयं कृत्वा I. 47.9c .. " " सर्वमाख्यातम् VII. 12.13c स्वं पुत्रशोकेन II. 64.54c >> ފލ स्वनेन ब्राह्मण्यम् I. 65.28c " स्वपूर्वदेहस्य VII. 57.9a स्वमपराधं मे VII. 26.50c त्वयि दुरात्मनि III. 42.4b त्वयि न तच्चित्रम् IV. 39.4a त्वामभिधास्यन्ति VII. 16.38c د. तौ शापमुत्सृज्य VII. 53.23a " " 12 rat पापकर्माणम् V. 21.14a दत्तास्मि रामाय II. 118.54a .. दवा प्रहृष्टोऽभूत् I. 14.46a दवा वरं देवः I. 15.300 दवा वस्तेिभ्यः VII. 8.34a दरवा सुतां सीताम् I. 73.29c दशरथः प्रीतः I. 77.23c दोषो महानत्र VI. 18. 31a नरस्य जातस्य II. 105. I7C सुकरे ध्रुवम् II. 57.22b नानाप्रहरणैः VII. 22.15a निबोध वचनम् II. III. 22 निरयगामी स्वम् VII. 15.25a निर्भत्स्यमाना सा V. 24.45c नित्य मानसा I. 57.9c Jain Education International १५९. एवं निष्फलमारब्धम् II. 63.2gc निःसंशयान्कृत्वा IV. " ور पर्वतसंबाधम् I. 39.22a परिचचार सः I. 47.11b ,, परुषमुक्तस्तु VI. 104.roa ,, पापसमाचारः I. 38.21c पितामहात्तस्मात् I. 16.6c " ار "" पितामहोक्तं च VII. 10.25c "" ,, पृष्टस्तु कैकेय्या II. 72.7a पूर्वैर्गतो मार्गः II. 105.30a प्रकारा बहव: VI. 106. 33a " " "" در 29 प्रपश्यामि तथा शृणोमि V. 32.11d प्रभावं भर्तारम् VI. III. 55c " ,, प्रभावो लवण: VII. 61.21a " "" 33 و 33 3. "" " , प्रशस्यमानौ तौ I. 4. 19c 35 प्रहारैर्बहुभिः VI. II3-34c " " 33 " 41.27a पन्नगकन्याश्च VII. 24.3a परमधर्मज्ञम् II. 111.25c ار " " प्रचोदितो राजा II. 4. Ira प्रजा यदि त्वेष VI. 61.20a "3 प्रभाषमाणेषु VII. 94.15a प्ररुषितो रामः III. 64.35c प्रव्राजितश्चैव II. 9.33a प्रविश्येव नृपस्तदानीम् VII. 54.1ga प्रवृत्त सङ्ग्रामे VI. 93.1oa प्रायाणि युद्धानि VI. 46.31a बलभ्यो बलिनः VII. 33.22a बहुविधं तं सा II. 29.22a बहुविधं दीनम् II. 52.59a बहुविधं दुःखम् V. 13.46a बहुविधं वाच्यः V. 68.2a बहुविधा वाचः VII. 43.20a VII. 97.22a बहुविधां चिन्ताम् V. 31.ra बहुविधैर्वाक्यैः VII. 73.1ga ވ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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