Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 175
________________ एवमेतन्मया दृष्टम् II. 69.17a एवमेतन्महाभाग VII. 97.2a एवमेतस्य पापस्य VII. 29.14c एवमेते हताः शूराः V. 63.12a एवमेतेश्च संयुक्तः VI. 22.39a एवमेव नरव्याघ्रः II. 61.16c ,, नरश्रेष्ठ VII. 87.2a. , प्रहस्तस्य VI. 58.42a ,, भविष्यति VII. 87.28b ,, मनुष्याणाम् II. 108.6a ,, महावीर्यः VI. 69.2a ,, शतं छिन्नम् VI. I07.57c एवमेषा महाभागा VII. I7.36a एष आशंसते लङ्काम् VI. 28.17a ,, काञ्चनको वर्ण: VII. 18.33c ,, कारण्ड यः पक्षी IV. 1.93a ,, कार्यविदां नयः IV. 65.25c ,, कालस्य निश्चयः IV. 2I.Iod ,, कालात्ययस्तात IV. 59.21c ,, केतुः परं संख्ये VI. 60.1ga ,, कोटिमहोघेन VI. 28.40c ,, क्रोशति नत्यूहः II. 56.ga ,, गच्छति पुत्रो मे VII. 28.6c ,, गच्छाम्यहं तात III. 42.4c ,, गन्धर्वकन्यायाम् VI. 27.20c ,, च प्रकृतिस्थोऽहम् IV. 7.1&a , चाभ्युदयो महान् II. 40.26b ,, चूडामणिदिव्यः V. 40.7a , चूडामणिः श्रीमान् V.65.23a चैव मृगः , III. 43.37a चैवाग्निहोत्रं च VI. 105.23c चैषामधिपतिः VI. 27:43c ,, जेष्यति काकुत्स्थौ VI. 55.4a ,, ज्ञातिसहस्त्रेण II. 84.12a ,, तं नरशार्दूल: VI. 84.18a एष तस्मात्प्रणश्यामि VII. 22.48a. .. तात दशग्रीवः VII. II.34c ,, तारात्मजः श्रीमान् IV. 22.11a ,, तूशनसः मुक्तः VII. 59.21a ,, ते दैवतं परम् VI. II9.35d ,, ,, नृगशापस्य VII. 55.1a. ,, ,, यद्यभिप्राय: VI. 34.13a ,. , राम गङ्गायाः I. 37.31a "", , ,44.2ra ,, ,, विस्तरो राम I. 36.27a ,, ,, सर्पसंकाश: VI. 71 56a ,, त्वां नयते राजा I. 54.10c ,, ,, रामरूपेण IV. 25.43a ,, ,, स्वशरीरेण I. 60.13c ,, त्विदानीमेवाहम् II. 73.26a दत्तवर: शेते VI. 123.5a दत्त्वा च वित्तानि IV.A.18a ,, दर्दुरसंकाश: VI. 26.41a ,, दात्यूहको हृष्टः IV. 1.24a ,, दाशरथी रामः III. 4.2a ,, ,, ,, VI. 67.II4a दाशरथिः श्रीमान VI. 62.I.a ,, देव दशग्रीवः VII. 26.46c ,, देवासुरगणान् VI. 105.7c. देशश्च कालश्च VI. 11.57a ,, देशः स काकु:स्थ I. 47.1c ,, दोषो महान्हि स्यात् V. 30.36a धर्मश्च सुश्रोणि II. 30.32a धर्मः परो नित्यम् I. 65.29c ,, सनातनः I. 25.Igb , , II. 21.49d ,, ,, III. 4.22d ,, ,, V. I.1o6d ,, स्त्रिया नित्यः II. 24.28a ,, नाम्ना दशग्रीवः VII. 21.6a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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