Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra
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उवाच हितमव्यप्र: IV. 33.3IC उवाच गर्वित वाक्यम् V. 3.43c उवाचाग्नि समाधाय VII. 17.28c उवाचाग्निसमीपतः VI. 116.24 उवाचार्तिसमापन्नः III. 70. उवाचात्महितं काले VI. 57.4c उवाचात्महितं वाक्यम् I. 63.26c
V. 22.12C
40.IC
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उवाचापि प्रहृष्टेव II. 25.3ga उवाचायतलोचनाम् II. 36.13d उवाचेदं ततो वाक्यम् II. 8. Ic उवाचेदं धनाध्यक्षम् II. 32.26c उवाचेदं बलाध्यक्षान् VI. 57.170 उवाचेदं महामतिः VI. 113.48d उवाचेदं वचो राजा II. 3.39a उवाचेदं वचो रामः VI. 112.22C उवाचेदं विभीषणः VI. 74.19b उवाचेदं सधैर्येण II. 22.20 उवाचेदं सुनिर्लज्जा II. 18.1gc उवाचैकान्तमागत्य V. 62.28c उवाचैतद्वचः पक्षी IV. 56.5c उवाचैनं सुसंरब्धम् VI. 88.5c उवाचैनं स्मितं कृत्वा I. 45.23a उवास काले धर्मिष्ठा I. 33.130 उवास तत्र सुखिता III. 3IC उवास तस्मिन्मुनिना सहैव उवास परमप्रीतः I. 69. 18a उवास मुनिभिः सह VII. 51.5f उवास रजनीं तत्र I. 26.35a उवास रामस्य तदा महात्मनः II. 33.26c उवास विजितेन्द्रिय: VII. 9.39d उवास सुखितः कालम् IV. 51.14a उवास सुखितस्तत्र I. 18.7c
26.36c
III. 17.3a
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उवास सुमहातपाः I. 29.3b उवाह शान्ति मम मैथिलात्मजा V. 68.29c उशना च प्रसन्नार्चि: VI. 4.48a उशना त्वब्रवीत्तत्र VII. 25.6a उशीर कृतमूर्धजान् III. 68. trd उशीरबीजमाश्रित्य VI. 27.27C उशीर बीजमासाद्य VII. 18.2c
उशीरैश्च समावृतम् II. 55.14d उषिताः स्म सुखं राज्ये VII. 73.13C उषिताः स्मोऽह वसतिम् II. 54.37C उषित्वा द्वादश समा III. 47.4a उषित्वा नव वर्षाणि VII. 50.60 उषा मेरुकल्पेषु II. 88.7c उषित्वा रजनीं तत्र II. 55.1a उषित्वा रजनीं शुभाम् II. 54.1b उषित्वा वचनान्मुनेः VI. 125.24b उषित्वा स सुखं तत्र III. 11.23a उषित्वा सुसमाहितौ I. 29.31b उष्ट्रगोऽश्वखरैर्भृत्या II. 70.29c उष्ण कुम्भकर्णश्च V. 27.29a उष्णतीत्रां सहस्रांशोः IV. 39.8c उष्णमन्तर्दधे सद्यः II. 63.16a उष्णमश्रु विमुञ्चन्तः II. 59.1c उष्णाढ्यस्यौदनस्यात्र I. 53.3a उष्णाभितप्तैस्तृषितैः VII. 31.20 उष्णार्दितां सानुसृतास्रकण्ठीम् V. 5.25a उष्णं पास्यसि राक्षसि III. 22.5d उष्णं विनिःश्वस्य रुदन्सशोत्रम् III. 63.2d उष्णं वै वारि दुःखिताः IV. 55. 18b उष्णं शोणितमेव च VII. 6.54b उष्य तत्र निशामेकाम् I. 48.9c उष्य तत्र महेष्वासः VII. 72.19c उष्यतां चेह रजनीम् VII. 76.28a उष्यतां रजनी त्वया VII. 32.3od उष्य राघवनन्दनः VII. 65.2b
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