Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 140
________________ उपकार्याः क्रियन्तां च I. 13.9c उपकार्या महाश्चि VII. 91.26a. , , , 92.8a उपक्षीणामिवापगाम् V. 19.14b उपकृप्तं यदैतन्मे II. 22.4a. उपगम्य खरं सा तु III. 20.23a उपगम्य ततः क्षिप्रम् V. 22.39c उपगम्य यशस्विनः II. I03.24b उपगम्य विनीताश्वम् VI. II.3c उपगम्य समाघ्राय III. 42.29a उपगम्याबला सुप्ता V. II.30c उपगम्याब्रवीद्रामम् VI. I05.2c उपगम्याब्रवीद्वाक्यम् III. 32.24a उपगम्याभिहत्याशु VI. 70.IIb उपगुह्य तपस्विनी II. 87.8b उपगुह्याबला सुप्ता V. I0.47c उपगुह्येव भामिनी V. I0.44d उपगूढानि सर्वतः IV. I.gd उपगृह्य शिरो राज्ञः II. 66.2c उपगृह्याशु संभारान् II. 14.26c उपचारेण वक्तव्यः III. 40. I0c उपजिघ्रन्पुनः पुनः V. 9.57d उपजिघेत्तु मां मूनि II. 72.30c उपतप्तोदका नद्यः II. 59.5a. उपतस्थुरुपस्थानम् II. 15.1c उपतस्थुमहात्मानः VII. 37.15a उपतस्थुमहार्हाणि I. 27.24c उपतस्थुर्यथापुरा II. 65.7d, उपतस्थुः सहस्रशः I. 17:3rd , VII. 37.12d उपतस्थे कृताञ्जलि: II. 50.32d उपतस्थे च वैदेहीम् III. 46.9a. उपतस्थे महाबल: VI. 56.8d उपतस्थे विशालाक्षी V. 53.26a उपतिष्ठति वीर्यवान् VI. 27.44b | उपतिष्ठेत विवशा V. 13.6c उपदिष्टं सुसूक्ष्मार्थम् II. 75.28a उपद्रुतमिदं सर्वम् II. 48.25a उपधाय भुजं तस्य V. 21.16a उपधाय भुजं महत् VI. 21.8b उपधाय शयिष्यते II. 42.16d उपधायारिसूदनः VI. 21.2b उपनिक्षिप्य सीतायाः VI. 31.42c उपनिन्युर्यमक्षयम् VII. 27.39d उपन्यस्तमपन्यस्तम् VI. 40.26a उपपत्या महाकपिः V. 9.39b उपपन्नं च युक्तं च II. II8.15a IV. 36.16c उपपन्नं नरश्रेष्ठ VII. 60.16c , , 95.150 उपपन्न मिदं वाक्यम् II. I07.2a उपपन्नं महाधनैः V. 10.2d , VI. 121.28d उपपन्नं महाहै श्च II. I0.16a उपपन्नं स्वतेजसा II. 16.IIb उपपन्नाश्च संध्ये द्वे VI. I0.20c उपपन्नास्ततस्ततः V. 14.22d उपपन्नेषु दारेषु II. I0I.18c उपपन्नरभिज्ञा नै: V. 35.83c उपपन्नो गुणोपेतः IV. 8.2c उपपन्नो गुणोपेतैः I. 7.20c उपप्रदानं सान्त्वं च VI. 63.Ita . उपप्रदानं सान्त्वं वा ,, 13.7a , , , 20.70 उपप्लुतमघौघेन II. 7.14c उपप्लुतमिवादित्यम् II. 18.6c उपभुङ्क्ते सुदारुणम् VII. 53.24b उपयुक्तं यथा वासः III. 33.19a उपभुज्यारिसूदनः VII. 65.37b उपभोक्तुं त्वमर्हसि II. I0I.25d Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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