Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 144
________________ उपासते महात्मानम् VII. 37.20 उपासन्ते च तानन्ये I. 14.18c सतन्ते महौजसः VII. 37.19d उपासन्ते विचक्षणाः VII. 37.21d 43.1b " " चतुर्वीरौ I. 30.6a उपास वक्रिरे शैलम् VII. 88.24c उपासांचक्रिरे सर्वे II. 3.2ta अपासांचकिरे हृष्टाः VII. 37.170 उपासिनः स काकुत्स्थः III. 11.30a सपासित्वा दशाननम् VII. 34.31b उपासीतावनाथवत् II. 64.5d उपासे गतचेतनम् IV. 23.26d उपास्तेऽप्सरसां वीर VII. 77.12a उपास्थितान्द्वारमुपेत्य विष्ठितान् II. 14.67d उपास्य तु शिवां संध्याम् II. 46.13a " 49.2c उपास्य पश्चिमां संध्याम् III. 11.6ga पास्यमानां घोरामि: - VI. 31.13a अपास्यमानो विविधैः V. 57.520 उपास्यमानः स नरेन्द्रपार्श्वतः VII. 64. 180 पास्य रात्रिशेषं तु I. 35.ra 99 तद्वचनं सुदारुणम् III. 59.27/c मामू IV. 55.1oa महारस VII. 84.14b सीताम् VI. 117.60 VI. 117.90 भराम: VI. 6. Iod समन्ततः I. 13.38b सीता भूयः II. 16. roc धर्म पुण्यम् IV. 60.13a तीरं गङ्गायाः II. 83.21a तं भ्रातरमुग्रतेजसम् III. 18.25c परितप्यतः II. 64. 17b रामं सहसा महर्षिभिः VI. 22.84c 13 १३७ Jain Education International उपेन्द्रमिव दुःसहम् IV. 17.1od उपेन्द्रो मधुसूदन: VI. 117.16d उपेयातां तथा कुरु V. 58.107 d उपोपविश्याधिकमार्तरूपा II. 42.35c उपोपविष्टस्तु तदातिवीर्यवान् II. 104.30a उपोपविष्टो भरतस्तदाऽग्रजम् II. 104.29d उपोपविष्टः सचिवैः I. 4. 31a उपोपविष्टैर्नृपतिर्वृतो बभौ II. 1. 5Ic उपोपविष्टं रक्षोभिः V. 49.72a उपोपविष्टं सचिवैः III. 32.4c उपोपविष्टः सचिवैः VII. 31.25c उपोपवेष्टुं भुवि यत्र वाली IV. 20.26d उपो रजनीं शुभाम् II. 119.3d उपोह्य रुचिरं नावम् II. 52.70 उद्बध्य वेण्युद्रथनेन शीघ्रम् V. 28.17 C उब शरं नील: IV. 23.170 उद्बलैरावृतानि च II. 33.1gd उभयापि वरो दत्तः VII. 4.30c उभया सहितः प्रभुः VII. 13.22b उभयोरपि राजेन्द्र I. 72.8a उभयोर्लोकयोर्लोके II. 62.130 उभयोर्वंशकर्तारम् VII. 2. 30 उभयोस्तीरयोस्तस्याः IV. 43.370 उभयोः सदृशं वीर VII. 13.17 उभयोः संप्रयुध्यतोः III. 28.gd उभयोः स्पृहयामहे II. 112.3d उभयौ प्रबभौ तदा II. 103.44d उभयं नाशकत्सूतः II. 40.320 उभयं हि महादोषम् IV. 22.23c उभाभ्यां राक्षसेश्वरः V. 10.22b उभाभ्यां राजपुत्राभ्याम् II. 59.2a उभाभ्यां सदृशं नाम VI. 29.8c उभाभ्यां संप्रधार्यार्थम् VI. 19.36c उभावकुरुतां तदा V. 35.48b उभावन्योन्यसदृशम् IV. 7.24c For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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