Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 136
________________ उत्पेततुस्तदा पक्षौ IV. 63.9a उत्पेतुरभिसंक्रुद्धाः VI. 81.7c उत्पेतुर्गगनं शीघ्रम् VI. I28.5IC उत्पेतुर्मनुजश्रेष्ठ I. 45.33c उत्पेतुश्च तथापरे VI. 4.63d उत्पेतुश्च निपेतुश्च VI. 4.II3e उत्पेतुश्च विना रात्रिम् III. 23.13a उत्पेतुः स्त्रीगणैः सह V. 1.22d उत्प्लुत्य गुणसंपन्नम् VI. 92.36a उत्सङ्गेनैव भुजगीम् III. 54.7a. उत्सवश्च महानासीत् I. 18.18a उत्सवाश्च समाजाश्च II. 67.15c उत्सवेषु च सर्वेषु II. 2.4la उत्ससर्ज च तीक्ष्णाग्रान् VI. 89.3c उत्ससर्ज तदा बाणम् VI. 71.86c ,, शापम् VII. 26.54a उत्ससर्ज महातेजाः I. 37.18a. उत्ससर्ज महाशापम् IV. II.52c उत्सहेयमतिकान्तुम् IV. 67.17a उत्सहेयमहं कर्तुम् IV. 62.13a उत्सहेयमहं गत्वा VI. 34.3a उत्सहे य हि विस्तीर्णम् IV. 67.Ira उत्सहे राघवं विना III. 45.14b उत्सहे शत्रुक्शगा III. 53.16a उत्सादनममित्राणाम् V. 51.32c उत्सादयति लोकांस्त्रीन् I. 16.7a उत्सादितमसह्यया I. 24.32b उत्सारयन्तस्तान्योधान् VI. II4.21c उत्सार्यमाणान्दृष्ट्वाथ VI. II4.24a उत्साहः पौरुषं सत्वम् V. 37.15a उत्साहमात्रमाश्रित्य IV. I.122c उत्साहवन्तः पुरुषाः IV. I.122a उत्साहवन्तो हि नरा न लोके III. 63.19c उत्साहश्च महागुणाः VI. 50.40b उत्साहो बलवानार्य IV. I.121a उत्सुकान्द्विजसत्तमान् VII. 94.5d उत्सुको भरतस्ततः II. 99.1b उत्सुकोऽभूज्जनो द्रष्टुम् II. 5.20c उत्सृजन्मारुतात्मजः VI. 81.16d उत्सृज्य च तमावासम् II. I08.5c उत्सृज्य नियम तदा VII. 32.8b उत्सृज्य नियमांस्तीवान् II. 22.23c उत्सृज्य न्यपतक्षितौ IV. 6.17d उत्सृज्य प्रमदामेनाम् III. 3.7a उत्सृज्याभरणं हि तत् II. 8.Ib उत्सृज्यामिमे राम VII. 35.41a | उत्सृष्टं भूषणमिदम् IV. 6.21c उत्सृष्टस्तु तदा गर्भः VII. 4.25c उत्सेकं च यथाविधम् III. 56.15b उत्सेकेनामिपन्नस्य VI. I03.16a उत्सेधं च पृथग्विधम् VII. 16.19b उत्स्मयित्वा तु भगवान् III. 43.43c उत्स्मयित्वा महाबाहुः I. I.65a उत्स्रष्टुं रावणो भीमम् VI. 100.2c उदकं काञ्चनैर्घटैः II. 65.8q उदकं चक्रतुस्तदा III. 68.36d उदकं चक्रतुस्तस्मै III. 68.35c उदकं द्विरदः सुखम् III. 16.21b उदकुम्भशतानन्ये VI. 60.52a. उदकेन च संमिश्रान् VI. III.I2ra उदक्तीरं समाश्रिताः IV. 55.20d उदग्रचित्रायुधचित्रकार्मुकम् V. 47.16c उदग्रायुधनिस्त्रिंशौ II. 43.14c उदग्रं सुविराजितम् II. 15.39b उदङ्मुखं तं तु रथं चकार II. 46.34c उदङ्मुखः प्रयाहि त्वम् II. 46.30c उदङ्मुखः प्रेक्षमाणः II. 96.12a उदतिष्ठत दीप्ताक्षः VI. 54:33c उदतिष्ठत दुर्धर्षः VI. 86.14c | उदतिष्ठत रामस्व II. 14.52a For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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