Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 120
________________ इंदे च ब्रह्मणा दत्तम् IV. 51.150 इदं च यदि वा मोहात् VI. 10.23a इदं च वचनं भृष्टम् VI. 31.14a इदं च विकृतं कृतम् IV. 56.16d इदं च वैष्णवं राम I. 75.210 इदं च सिद्धं वनजातमुत्तमम् III. 46.36c इदं च सुमहत्कर्म VII. 71.9c इदं चाभरणं सौम्य VII. 76.30a इदं चास्याहृतं शिरः VI. 31.36d इदं चिरगृहीतत्वात् V. 15.47a इदं चोवाच धर्मज्ञम् IV. 12.7a इदं जगाद भद्रं ते I. 58.15a इदं जगाद वचनम् III. 71.21a इदं तत्तव रामस्य VI. 31.44a इदं तत्प्रत्ययान्वितम् III. 59.9d इदं तथ्यं मम वचः IV. 6. 7a इदं तद्ब्रह्मणो घोरम् VI. 60.6a इदं तं भरतं तदा II go. 11d इंद्र तद्वीरशयनम् IV. 23.6c इदं तव च दुःखाय II. 20.270 इदं तावत्सुवर्ण च VII. 78.24 इदं तावद्यथाकामम् II. 58.29a इदं तु ज्ञातुमिच्छामि II. 19.3a इदं तु दुःखं यदनर्थकानि मे II. 20.52a इदं तु नूनं हृदयं स्थिरं मे V. 28.4b इदं तु नृपशार्दूल I. 16.1ga इदं तु पतितं तस्मात् VII. 73.14a इदं तु पुरुषव्याघ्रः: V. 58.99a इदं तु मन्थरे मह्यम् II. 7.34a इदं तु मम दीनस्य VI. 1. 12a इदं तु सुमहच्चित्रम् VI. 48.31a इदं ते चारु संजातम् V. 20. 12a इदं तेजः समुत्स्रक्ष्ये VII. 56.170 इदं ते तेन जीवसे II. 64.25b इदं ते मत्प्रियं वीर VI. 32.17C १५ Jain Education International ११३ इदं ते राज्यकामस्य II. 75. Ira इदं तेषामनाथानाम् II. 104.42 इदं त्वमनुपालय III. 55.26b इदं त्वयि न वक्तव्यम् VII. 50.13a इदं त्वसदृशं कर्म VII. 24.20a इदं विदानीं संपश्य II. 9.3a इदं दशरथं नृपम् I. 16.16b इदं दिव्यं महचापम् III. 12.32a इदं दिव्यं वरं माल्यम् II. 118. 18a इदं द्वितीयं दुर्धर्षम् I. 75.13a इदं धनुर्वरं दिव्यम् I. 67.14a इदं धनुर्वरं ब्रह्मन् I. 67.8a इदं धनुर्वरं राजन् I. 67.6a इदं धर्मार्थसहितम् I. 8.7c इदं धर्मे स्थिता धर्म्यम् II. 44.IC इदं न क्षमणीयं हि VI. 8.6c इदं निखिलमप्यम्यम् II 106.25a इदं नेत्रसहस्रं तु VII. 18.22a इदं नो नुद दुःखहन् VII. 35.57b इदं पञ्चाप्सरो नाम III. 11. Ira इदं परमसंहृष्टः III. 11.46c इदं परुषमावत् III. 57.17b इदं पवित्रं पापघ्नम् I. 1. 98a इदं पश्येति रामाय IV. 6.150 इदं पुण्यमिदं रम्यम् III. 15.1ga इदं पुरस्यास्य सराक्षसस्य VI. 14.212 इदं पुरोहितो वाक्यम् II. 82.4c इदं प्रविष्टाः सहसा IV. 51.2a इदं प्राप्तं स्वकर्मजम् II. 64. 13d इदं प्रियहितं वचः II. 20.22d इदं प्रोवाच काकुत्स्थम् III. 4. 130 इदं प्रोवाच धर्मात्मा III. 6.21c इदं प्रोवाच राघवम् IV. 4.30d इदं बहुमृगद्विजम् III. 15.1gb इदं बहुशलाकं ते IV. 10.3a For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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