Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 104
________________ आर्य तातः परीत्यज्य II. I0I.5a आर्य द्रक्ष्यामि संहृष्टम् II. 99.13c आर्यपादाविमो मतो II. II5.16b आर्यपादौ गृहीत्वा तु VI. 127.I7c आर्यपुत्र पिता माता II. 27.4a आर्यपुत्र सहानुज III. 43.3d आर्यपुत्रस्य रामस्य VI. 32.29c आर्यपुत्राः करिष्यन्ति II. 23.25c आर्यपुत्राभिरामोऽसौ III. 43. I0a आर्यपुत्रावतिक्रम्य VI. 74.19c आर्यपुत्रेति वादिनी IV. 19.27b आर्यपुत्रेति वादिन्यः VI. II0.4a. आर्यभावपुरस्कृतः I. I.35d आर्य प्रत्युपवेक्ष्यामि II. III.I3c आर्य लक्ष्मण संप्राह V. 53.16a आर्य संदर्शितः स्नेह: VI. 74.20c आर्यः सर्वसमश्चैव I. I.I6c आर्यस्य त्वं विशालाक्षि III. 18.10c आर्यस्य पादुके गृह्य VI. 126.8c आर्गस्यागमनं प्रति VII. 62.12d आर्यस्याज्ञां पुरस्कृत्य VII. 52.8a . आर्या च धर्मनिरता II. 70.8a आर्याणां विशतां तदा II. 82.2b आर्या यदनुशास्ति माम् II. 39.27b आर्यायाः सदृशं शीलम् V. 59.3a आर्या वा साऽश लक्ष्यते III. 6.4.23d आर्ये कस्मादजानन्तम् II. 75.20a आर्येण किं नु कैकेय्या: VI. 32.5a आये किमब्रवीद्रा जा II. 72.34c आर्ये किमवमन्येयम् II. 39.3IC आर्येण मम मान्धात्रा IV. 18.33a आर्येण हि पुरा शून्या VII. 62.12a आर्येणेव परिकाम् III. 59.7a आर्येत्येवामिसंक्रुश्य II. 99.39c आर्ये यद्राघवो वनम् II. 21.2b १३ आर्ये यूथान्यनेकशः V. 39.5od आर्यो मे पालयिष्यति II. 88.28d आर्यो ह्वयति वो राजा II. 34.IIC आर्षभं चर्म खड्गं च VI. 96.21a आर्षभाणि च चर्माणि V. I.240 आर्षेण विधिना युक्ताम् VII. 17.2c आर्षेण विधिना वेद्याम् II. 28.16c आर्षोऽयं देवि निष्पन्दः III. 55.35a आलभ्य हरिपुङ्गवः V. I,125b आलयं मरुतामिव VI. I0.6b आलस्यं पञ्चवृत्तिताम् II. I00.65d आलिखन्तमिवाकाशम् VI. 24.9a , 99.12c आलिखन्तमिवाम्बरम् IV. 67.IIb V. 2.23b VII. 31.15b आलिङ्गन्ती महाद्रुमान् III. 52.7b आलिङ्गय चालिङ्गय च बाहुयोः VI. 40.18a आलिङ्गय पुत्रं सुविनष्ट संज्ञः II. 34.60c आलीननरवारणाम् II. II4.2b आलोकं ददृशुवाराः IV. 50.24a आलोकमपि रामस्य II. 47.2c आलोक्य च परस्परम् III. 24.22d आलोक्य नगरी तां च II. 47.16a आलोक्य रामो भुजगेन्द्रबाहुः VI. 59.11b आलोक्य रावणो राजा VI. 26.8a आवयोविजयं युद्धे III. 69.23c आवर्जयत वैदेहीम् V. 22.38a आवर्त इव गङ्गायाः V. 43.15c आवर्त इव संजज्ञे VI, 58.25a आवर्तयति स द्विजः VII. 88.20d आवर्तयन्त तेऽश्रूणि II. 47.16c आवर्तस्वननिःस्वनाम् VI. 58.31d आववार शरोघेण VI. 76.61c आवसत्परमप्रख्यः I. 47.17c Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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