Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 115
________________ इति वाक्यविदां वरः IV. 59.2rd इति वाक्यान्तरे तस्य VII. 16.8a इति वानरराजस्त्वाम् V. 58. 145d इति वामन्यत श्रीमान् V. 9.39d इति विज्ञाय हरयः VI. 61.320 इति विद्याधरा वाचः V. 1.29a इति विलपति पार्थिवे प्रनष्टे II. 59.33a इति विलपति राघवे तु दीने III. 62.20a इति वै व्याजहार ह III. 60.2d इति वैश्रवणो राजा III. 4.1ga इति व्यवस्थां हरिपुङ्गवेश्वर: IV. 29.33c 'इति शप्तो महातेजाः VII. 51.170 इति शब्दो महानभूत् VI. 42.44b इति शुश्राव राघवः I. 14.17d इति शोकसमाविष्ट: V. 58.161a इति श्रुत्वा हृषीकेशः I. 45.29c इति श्रुत्वा यनादृत्य VI. 67.1140 इति श्रुत्वैव राघव: VI. 84.7b इति संचिन्तयित्वा तु I. 54.5a इति संचिन्त्य तद्राजा II. 12.3d इति संचिन्त्य धर्मात्मा III. 44.25C इति संचिन्त्य भूयोऽपि V.12.14C इति संचिन्त्य मनसा V. 1. 1750 इति संचिन्त्य राघवः II. 117.4b VI. 100.39b इति संचिन्त्य वानरः V. 18.30b " " 99 इति संचिन्त्य हनुमान् V. 30.40c 37.35a 33 39 د. 33 "" " 93 "" ور در " 43.2c VI. 101.36a इति संचोदितास्तत्र I. 14.14 Jain Education International इति संजल्पमानां ताम् V. 37. Iga इति संदिश्य बहुशः VII. 93.16a इति सबहुविधं महाप्रभाव: V. 30.44a इति संप्रविचार्य राजसिंह: VII. 95.17a १०८ इति संभाषमाणे तु II. 78.5a इति संभाष्यमाणे तु III. 24.27a इति संवदतोरेवम् II. 89.4a इति संविप्रमनसः III. 11.14c इति सर्वमशेषतो मया VII. 57.21a इति सर्वा महिष्यस्ताः II. 20.6a " 41.7a इति सर्वं समाख्यातम् VI. 30.35a इति सान्वैश्व तीक्ष्णैश्व II. 35.36a इति सा लक्ष्मणेनोका III. 18.13a इति सा शोकसंतप्ता II. 30.22a इति सिद्धास्तदाऽब्रुवन् III. 54.11b इति सीता च रामश्र II. 56.16a इति सीताञ्जलिं कृत्वा II. 55.25C इति सीतावचः श्रुत्वा III. 43.23c इति सीतां वरारोहाम् III. 58.18a इति सुधाव हनुमान् V. 55.3.30 इति सूतवचः श्रुत्वा II. 4.8d इति सूतो नरेन्द्रेण II. 58. 13a इति सूतो मतिं कृत्वा II. 14.650 इति सौमित्रिमब्रवीत् IV. 38.11 b इति स्म दधिरे सर्व VI. 24.110 و. " 21C ." इति स्वदोषान्परिकीर्तितांस्तया III. 33.24a इति स्वमन्त्रिणां मध्ये VI. 10.26a इतिहासं पुरातनम् VI. 117.32b 128.114d "" 33 در For Private & Personal Use Only ا. 33 11 इति हृदय मनोविदारणम् I. 19.22a इति हृदयसुखं निशम्य वाक्यम् I. 18.59a इति होवाच काकुत्स्थः VI. 18.70 इति होवाच कैकयीम् II. 12.56b इति होवाच पार्थिवम् I. 67.1d इति होवाच पार्थिव: V. 64.12h इति होवाच राक्षस: VII. 65.20d इति होवाच राघवम् VII. 96.14d www.jainelibrary.org

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