Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

View full book text
Previous | Next

Page 86
________________ अहमासं निराकृता II. 20.41b अहमासादितो राजा III. 29.IOC अहमिक्ष्वाकुनाथेन V. I.87a अहमिन्द्रं वधिष्यामि VII. 29.6a अहमुत्पादयामि ते IV. II.83d अहमुत्सादयिष्यामि VI. 12.36a , 63.42a अहमेकस्तु नोत्सहे II. II2.IIb अहमेकस्तु संप्राप्तः V. 35.75a अहमेको गमिष्यामि II. 53.17a अहमेकोऽपि पर्याप्त: V. 59.7a » ,, ,, 60.5c अहमेको महीपालान् II. 23.29c अहमेको वधिष्यामि IV. 45.12a ,, ,, VI. 8.24a अहमे को हनिष्यामि VI. 8.20c अहमेतद्गमिष्यामि VI. 65.1ga अहमेनं निषूदये VII. 35.43d अहमेनं वधिष्यामि III. 43.47c ,, ,, VII. 62.9c अहमेव गमिष्यामि II. 93.25c अहमेव धनुष्पाणिः I. 20.5a अहमेव निवत्स्यामि II. III.26c अहमेव निहन्तास्मि VII. 27.20a अहमेव सह भ्रात्रा VI.37.35a अहमेवानुरूपा ते III. 17.26c अहमेवाहरिष्यामि III. 5.33a. , ,, 7.14a अहमोपयिकी भार्या V. 21.17a अहं पञ्चसु भूतेषु VII. 96.21a अहं पश्चाद्गमिष्यामि II. I03.2IC अहं पश्यामि चिन्तयन् III. 72.10c अहं पश्यामि लोकेषु III. 55.20c अहं पश्यामि विध्वस्तान् II. 69.13c अहं पुत्रसहाया त्वाम् IV. 23.26c अहं पुनर्देवकुमाररूपम् II. 12.103a अहं पूर्वाः पचन्ति स्म II. 12.96c अहं पौलस्त्यतनयः VII. 12.15a अहं प्रदातुमिच्छामि II. 31.35a अहं प्रभावसंपन्ना III. 17.25a अहं प्रसादयाञ्चके IV. I0.Ic अहं प्रस्थापितः प्रभो VI. 32.36d अहं प्रस्रवणस्थाय V. 37.23a अहं प्रायमिहासिष्ये II. 21.27c अहं प्लवितुमुत्सहे IV. 65.7d अहं यद्यहरं भार्याम् VI. 20.Ila अहं यमश्च वरुणः VII. 6.6c अहं युष्मान्समाश्रित्य VII. 36.57a अहं योजनसंख्यायाः IV. 45.15a म्हं राक्षसराजस्य V. 3.28a अहं राक्षसराजेन VI. 78.10a अहं राघव कैकेय्या II. 34.26a अहं राममनुव्रता III. 47.33d " , , ,34d " , , , 35d , , ,, ,, 36d अहं रामस्य संदेशान् V. 34.2a अहं रामं सह भ्रात्रा III. 22.40 अहं रामोऽथवा राजा II. 69.17c अहल्यया त्वेवमुक्तः VII. 30.41a अहल्यादर्शनं चैव I. 50.24a अहल्यां देवरूपिणीम् I. 49.IId अहल्यामिदमब्रवीत् I. 48.17d , , ,, 21d अहल्यासहितः पुरा I. 48.16b अहल्यासहितः सुखी I. 49.21b अहल्या स्त्री विनिर्मिता VII. 30.22b अहल्यां समपूजयन् I. 49.20b अहल्येत्येव च मया VII. 30.23c | अहं लक्ष्मणमब्रवम् II. 86.2d Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182