Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 87
________________ अहं लङ्कापतिर्भद्रे VII. 17.22 अहं लङ्कापुरी वीर V. 58.51a अहं वः कामये सर्वाः I. 32.16a अहं वनमिदं दुर्गम् III. 2. 12 अहं वः प्रतिजानामि IV. 55.12a अहं वा कुम्भकर्णो वा VI. 57.6a अहं वानरराजस्य IV. 30.68c अहं वापि विपद्येयम् V. 37.56a अहं वास्य रणे मृत्युः III. 27.4a अहं विनिकृतो भ्रात्रा IV. 8.17a अहं विनिकृतो राम IV. 5.21c अहं विन्ध्यं समारुह्य IV. 63.2c - अहं विष्णुरहं रुद्रः VII. 6.6a अहं वेद्मि महात्मानम् I. 19.14C अहं वेलेव सागरम् II. 23.28d अहं व्यामोहितो देवैः VII. 10.48c अहश्चाप्यतिवर्तते V. 1. 124b अहः शिवमुपस्थितम् II. 15.22d अहं शूर्पणखा नाम III 17.2cc अहं श्रोष्ये सपत्नीनाम् II. 20.39c अहं श्लाघ्यः पतिस्तव III. 49.12b अहं श्वेत इति ख्यातः VII. 78.4c अहं सखा ते काकुत्स्थ VI. 50.46a अहं समीकरिष्यामि VI. 12.35c अहं समुद्यतो हन्तुम् VII. 20.1ga अहं संपातिवचनात् V. 31. 13 अहं स रावणो नाम III. 47.26c अहं सर्वं करिष्यामि II. 30.27c अहं सर्वेषु कालेषु IV. 9.3c अहं सुग्रीवसचिवः V. 34.38c अहं सुग्रीव संदेशात् V. 51.2a अहं सेतुं करिष्यामि VI. 22.44a अहं सौमित्रिणा सह VI. 37.31b अहं स्थितोऽस्मि पश्यामि VII. 8.5c अहं हत्वा दशग्रीवम् VI. 1.1ga Jain Education International ८० अहं हि तपसोग्रेण III. 71.8c अहं हि तस्याद्य मनोभवेन V. 32. 12a अहं हि ते क्षमं मन्ये IV. 15.24C अहं हि ते लक्ष्मण नित्यमेव II. 21.56a अहं हि नगरी लङ्का V. 3.30a अहं हि नियमाद्राम I. 34.12 अहं हि नैवास्तरणानि न स्रजः II. 9.64a अहं हि पुरुषव्याघ्रौ II. 73.14a अहं हि मतिसाचित्र्यम् III. 71.19c अहं हि मातङ्गविलास गामिना IV. 24.400 अहं हि वचनाद्राज्ञः II. 18.28c अहं हि विषमयैव II. 12.47a अहं हि शोषयिष्यामि I. 64. 180 अहं हि सीतां राज्यं च II. 19.7a अहं ह्यतितनुश्चैव V. 30.17a अहं प्रियमुक्तः स्याम् II. 97. 15C अहं ह्याजिस्थितस्यास्य IV. 16.8a अहितं कौशिकस्य च I. 63.26d अहितं च हिताकारम् VI. 63.16a अहितं चापि पुरुषम् I. 7.1IC अहिता नाम ते नित्यम् VII. 45.21e अहिरेव अहे पादान् V. 42.9c अहिंसकं सख्यमुपेय सामिकम् VII. 33.18c अहिंसका वीतमलाच लोके II. 109. 360 अहिंसारतिरक्षुद्रः V. 31.3a अहीनं सर्वविक्रमैः VI. 36.5d अहृष्टो राघवोऽत्रवीत् VI. 114.18d अमानास्त्वरया स्म दूताः II. 68.220 अहो कामस्य वामत्वम् IV. 1. 68 अहो खलु कृतं कर्म V. 55.30a अहो गाम्भीर्यमेव च VII. 34.37b अहो गीतस्य माधुर्यम् I. 4. 17C अहो तम इवेदं स्यात् II. 67.36a अहोऽतिबलवद्रक्षः VII. 27.70 अहो तृप्ताः स्म भद्रं ते I. 14.170 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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